राकेश दुबे@प्रतिदिन। कहते हैं प्रधानमंत्री की निजी दिलचस्पी की वजह से मार्च से अब तक लगभग चार लाख करोड़ रुपये की केंद्रीय और राज्यस्तरीय परियोजनाएं फिर से चल पड़ी हैं। देश में लगभग आठ लाख करोड़ रुपये की परियोजनाएं लटकी हुई हैं, जो कि देश के सकल घरेलू उत्पाद का 7.6 प्रतिशत है। अगर प्रधानमंत्री निजी दिलचस्पी लेकर इस बोझ को कम कर पाएं, तो इससे अर्थव्यवस्था का भला होगा, देश की तरक्की होगी और रोजगार भी बढ़ेंगे।
देश में ज्यादातर परियोजनाएं सरकारी कामकाज के तरीके और लालफीताशाही की वजह से लटकती हैं। हमारे यहां ढेर सारे विभाग और उनसे ज्यादा नियम-कायदे हैं जिनसे पार पाना आसान नहीं है। इसलिए भारत को उद्योग लगाने और व्यापार करने के लिए सबसे मुश्किल देशों में से गिना जाता है।
पिछले दिनों आई विश्व बैंक की ताजा रपट के मुताबिक, इस सिलसिले में भारत ने कुछ तरक्की की है और 189 देशों में उसका नंबर 134 से 130 तक आ गया है। लेकिन इस तरक्की को कितनी तवज्जो दी जाए, यह सोचा जाना चाहिए, क्योंकि 130 वें नंबर पर रहना भी कोई अच्छी बात नहीं है। अगर हमें सचमुच आर्थिक महाशक्ति बनना है, तो हमारा लक्ष्य पहले 50 देशों में आने का होना चाहिए।
पूरी दुनिया में भी भारतीय नौकरशाही अपने तौर-तरीकों के लिए विशेष रूप से बदनाम है। भारत के प्रधानमंत्री या अन्य नेता जब विदेशों में निवेशकों को आमंत्रित करने जाते हैं, तो उन्हें विशेष रूप से यह कहना पड़ता है कि उन्हें भारत में निवेश करने के लिए कोई अड़ंगों का सामना नहीं करना पड़ेगा। प्रधानमंत्री के हस्तक्षेप से अगर चार लाख करोड़ रुपये की परियोजनाएं फिर से राह पर आ गई हैं, इसका मतलब है कि वे किन्हीं ठोस कारणों से नहीं, बल्कि सरकारी रवैये की वजह से रुकी हुई थीं।
जरूरत इस बात की है कि व्यवस्था को सुधारा जाए। एक राज्य में तो मुख्यमंत्री इस तरह काम कर सकता है, लेकिन राष्ट्रीय स्तर पर प्रशासन इतना फैला हुआ होता है कि सिवाय प्रशासनिक व्यवस्था को चुस्त, सरल व विकेंद्रित करने के अलावा कोई उपाय नहीं है। भारत की 60 प्रतिशत से ज्यादा अर्थव्यवस्था मझोले, छोटे और अनौपचारिक क्षेत्र में है। इन्हें जब तक सरकार की जकड़बंदी से मुक्ति नहीं मिलेगी, तब तक सचमुच देश की तरक्की नहीं हो सकती। अच्छा प्रशासन पाने का हक तो हर नागरिक को है, इसलिए प्रशासनिक सुधारों पर विशेष जोर देना बहुत जरूरी है।
श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
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