भोपाल। प्रदेश कांग्रेस के मुख्य प्रवक्ता के.के. मिश्रा ने डीमेट परीक्षा-2015 के परिणामों में धांधली, घोटाले और भारी भ्रष्टाचार होने का गंभीर आरोप लगाते हुए कहा है कि इस समूची परीक्षा प्रक्रिया में एसोसिएशन आफ डेन्टल मेडीकल काॅलेज, प्रवेश एवं फीस विनियामक समिति और उच्च न्यायालय, जबलपुर द्वारा नियुक्त केंद्रीय तकनीकी पर्यवेक्षक सीएलएम रेड्डी की भूमिका जहां संदिग्ध प्रतीत हो रही है, वहीं कोर्ट की आड़ में सरकार डीमेट मामले में गुमराह कर निजी मेडीकल काॅलेज के संचालकों को अपनी सुविचारित रणनीति के तहत उपकृत कर रही है।
आज यहां जारी अपने बयान में श्री मिश्रा ने कहा कि इस परीक्षा में भी एजेंटों और दलालों ने 50 लाख रूपयों से लेकर 1 करोड़ 25 लाख रूपये तक छात्र/छात्राओं से प्रवेश के नाम पर वसूली कर प्रवेश दिलाया है। कांग्रेस के पास इस बात के समूचे प्रमाण है, जिन्हें पार्टी सीबीआई को सौपेगी। उन्होंने कहा कि एजेंट, दलालों के इस रैकेट में बिहार, दिल्ली, पंजाब और उत्तरप्रदेश के लोग शामिल हैं, जिन्होंने राजधानी भोपाल की बेशकीमती होटलों में पालकों और काॅलेज मालिकों के साथ मिलकर अपने खेल को अंजाम दिया है।
होटल जहांनुमा से चैतन्य कुमार सिंह की गत दिनों हुई गिरफ्तारी इस बात का प्रमाण है। इस काम में एजेंटों और दलालों ने जिन मोबाइल नंबरों का उपयोग किया है, उनमें से कुछ नंबर 7030838883, 9168000067, 9311188820, 9599766588, 9386426025 और 9871076638 चिन्हित हुए हैं। श्री मिश्रा ने एक निजी मेडीकल काॅलेज के संचालक पर तो यह भी आरोप लगाया है कि होटल जहांनुमा से थाना कोहेफिजा पुलिस के हत्थे चढ़े दलाल चैतन्य कुमारसिंह को जिस वकील के माध्यम से कानूनी सहायता उपलब्ध करायी गई, वह भी उसी ने उपलब्ध कराया है। इसकी जांच होनी चाहिए। कांगे्रस की मांग है कि थाना कोहेफिजा में चेतन्यसिंह की गिरफ्तारी से संबंधित अपराध सीबीआई को सौंपा जाये और चेतन्यसिंह के मोबाइल सहित उक्त उल्लेखित सभी मोबाइल नंबरों की काॅल डिटेल्स् (सीडीआर) निकाल कर उसे भी जांच में शामिल किया जाये।
श्री मिश्रा ने डीमेट परीक्षा को लेकर प्रश्न उठाते हुए कहा कि एएफआरसी के पास परीक्षा परिणाम की विस्तृत रिपोर्ट होने के बाद भी उन्होंने उसे बेवसाइट पर क्यों नहीं डाला। एएफआरसी तथा पर्यवेक्षक रेड्डी ने एजेंट/ दलालों द्वारा लाखों रूपये वसूल कर प्रवेश दिलाने की सूचना पर संज्ञान क्यों नहीं लिया। रेड्डी ने परीक्षा परिणामों की बतौर पर्यवेक्षक जांच क्यों नहीं करवाई। इससे ऐसा प्रतीत होता है कि इस पूरे खेल में एएफआरसी और रेड्डी की भी पूरी तरह से मिलीभगत है। विगत् दिनों एआईडीएमटी की काउंसलिंग में भी नियमों को तोड़-मरोड़ कर म.प्र. के बाहर के छात्रों को दाखिला दिया गया, जिससे प्रदेश के आरक्षित वर्ग के अभ्यार्थी वंचित रह गये।
श्री मिश्रा ने सरकार पर भी सीधा निशाना साधते हुए कहा है कि वह निजी मेडीकल काॅलेज के संचालकों के इस बड़े भ्रष्टाचार में पूरी तरह शामिल है और कोर्ट के नाम पर स्वयं को ईमानदार बताने की कोशिश कर रही है, जबकि हकीकत यह है कि डीमेट परीक्षाओं को लेकर सुप्रीम कोर्ट के तत्कालीन जज मार्कंडेय काटजू द्वारा सितम्बर 2009, में दिये गये फैसले में अपने पारित निर्णय को अस्थायी निर्णय बताते हुए निर्देशित किया था कि राज्य सरकार इसे अंतिम सुनवाई में हर हालत में पूर्ण करवा ले, किंतु पूरे 6 वर्ष बीत जाने के बाद भी सरकार ने अंतिम निर्णय हेतु रूचि नहीं दिखायी, क्योंकि अनिर्णय की स्थिति में उसके माध्यम से निजी मेडीकल काॅलेज संचालकों को वह भारी भरकम लेनदेन के बाद भ्रष्टाचार का खेल खेलती रहे। यही नहीं इस बावत् राज्य सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के विभिन्न वरिष्ठ अधिवक्ताओं को सरकारी खजाने से 86 लाख रूपयों का भुगतान भी कर डाला, किंतु आज भी स्थिति ज्यों की त्यों बनी हुई है?
श्री मिश्रा ने व्यापम महाघोटाले को लेकर सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर जांच कर रही सीबीआई से आग्रह किया है कि इन उक्त उल्लेखित बिंदुओं को जांच प्रक्रिया में शामिल किया जाये, ताकि राज्य सरकार, निजी मेडीकल काॅलेज के संचालकों, एजेंटो और दलालों का गठजोड़ उजागर हो सके। उन्होंने व्हिसल ब्लोअर पारस सखलेचा की बेशभूषा पर भी उच्च न्यायालय द्वारा की गई टिप्पणी को किसी व्हिसल ब्लोअर को हतोत्साहित करने का प्रयास बताते हुए कहा कि प्रदेश में अब किसी भी याचिकाकर्ता की डेªसकोड भी तय होगी क्या?