राकेश दुबे@प्रतिदिन। दो महीने से दाल, खासकर अरहर और मूंग की दालों के भाव आसमान छू रहे हैं। बाजार में अरहर की दाल 190-200 रुपये और उड़द की दाल 195 रुपये प्रति किलो बिक रही है। दालों के भाव पिछले कुछ वर्षों से ऊंचे बने हुए हैं और यह आम जन की पहुंच से बाहर होती जा रही हैं। वित्त मंत्री भी मानते हैं कि चाहे दूसरी चीजों में महंगाई कुछ थमी हो, लेकिन प्याज और दालों में महंगाई तेजी से बढ़ी है।
आनन-फानन में सरकार ने दालों के आयात का तो हुक्म जारी किया ही है, 500 करोड़ रुपये का एक फंड भी बनाया है, जिससे आयातित दालों की ढुलाई और प्रसंस्करण की लागत कम की जा सके, लेकिन दाल के पिछले भाव याद करना जी को जलाना है।
कृषि प्रधान देश होते हुए भी, दुनिया में दालों का सबसे बड़ा उपभोक्ता राष्ट्र भारत दूसरे देशों से इसका आयात कर रहा है क्या आश्चर्य का विषय नहीं है। भारतीय थाली में दालों का खास महत्व है। अधिकांशतः शाकाहारी भोजन पर निर्भर आम जनता को ये दालें जरूरी प्रोटीन उपलब्ध कराती हैं। दालों के महंगे होने से घर का बजट ही नहीं बिगड़ता, बल्कि गरीब की थाली से पोषण भी गायब हो जाता है।
गौरतलब है कि एक ओर लोगों की आमदनी बढ़ी, और दालों को खरीदने की क्षमता भी, दूसरी तरफ दालों का उत्पादन बढ़ने की गति अपर्याप्त रही। वर्ष 1960-61 में देश में दालों का उत्पादन 130 लाख टन था, जो 2013-14 तक आते-आते मात्र 190 लाख टन तक ही बढ़ पाया, यानी 50% से भी कम वृद्धि। इसका कारण था दालों के अंतर्गत कृषि क्षेत्र का स्थिर रहना और प्रति हेक्टेयर उत्पादन में बहुत कम वृद्धि होना। दालों के उत्पादन में वृद्धि कम होने के कारण दालों की प्रति व्यक्ति उपलब्धता 1960-61 में ६९ ग्राम से कम होकर 2013-14 में मात्र 42 ग्राम रह गई। हालांकि अनाज की प्रति व्यक्ति उपलब्धता भी 400 ग्राम से बढ़कर लगभग 440 ग्राम तक ही पहुंच पाई है, लेकिन दालों की प्रति व्यक्ति उपलब्धता में भारी कमी वास्तव में चिंता का विषय है।
श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
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