जबलपुर। हाईकोर्ट ने कहा कि व्यापमं घोटाला आरोपी डॉ.विनोद भंडारी और सुधीर शर्मा में अंतर है। भंडारी को जमानत मिल गई, इसलिए सुधीर शर्मा को जमानत नहीं दी जा सकती। सुधीर शर्मा को जमानत मिली तो वो सबूत और गवाहों से छेड़छाड़ कर सकता है। यह मानते हुए हाईकोर्ट ने सुधीर शर्मा की तमाम दलीलें खारिज करते हुए जमानत निरस्त की।
शुक्रवार को मुख्य न्यायाधीश अजय माणिकराव खानविलकर व जस्टिस संजय यादव की डिवीजन बेंच में मामले की सुनवाई हुई।
इस दौरान सीबीआई की ओर से अधिवक्ता विक्रम सिंह ने जमानत अर्जी का विरोध किया। उन्होंने दलील दी कि शर्मा को मध्यप्रदेश व्यावसायिक परीक्षा मंडल भोपाल द्वारा आयोजित प्लाटून कमांडर व संविदा शाला शिक्षक भर्ती सहित अन्य परीक्षाओं में अपने रसूख का इस्तेमाल करके मनमाने तरीके से पास कराने और प्रवेश दिलाने का आरोप है। यही नहीं नियुक्ति प्रक्रिया को भी नेताओं व अधिकारियों से संबंधों का इस्तेमाल करके प्रभावित करने के सबूत जांच एजेंसी के हाथ लगे हैं। लिहाजा, जमानत अर्जी खारिज किए जाने योग्य है।
डॉ.भंडारी जैसा नहीं है मामला
खनन कारोबारी शर्मा ने जमानत अर्जी में कहा था कि उसका मामला व्यापमं के अन्य आरोपी डॉ.विनोद भंडारी जैसा है। चूंकि उसे सुप्रीम कोर्ट से जमानत मिल चुकी है, अत: उसी आधार पर हाईकोर्ट से भी जमानत दी जा सकती है। इस पर सीबीआई की ओर से विरोध व्यक्त करते हुए कहा गया कि शर्मा का केस डॉ.भंडारी जैसा नहीं है। शर्मा पर लगे आरोप डॉ.भंडारी से भी गंभीर हैं। उसने अपने रसूख का दुरुपयोग करके वास्तविक हकदार छात्र-छात्राओं व बेरोजगारों का हक मारा है। ऐसे में उसकी जमानत की मांग बेमानी है। ऐसा इसलिए भी क्योंकि उसके खिलाफ भले ही अन्य मामलों में जांच पूरी हो गई हो लेकिन एक मामले में अंतिम चालान पेश होना फिलहाल बाकी है।