भोपाल। कृषि विभाग में एक अजीब तरह का घोटाला चल रहा है। ढेर सारे कर्मचारी ऐसे हैं जिन्हे समयमान वेतनमान दिया जा रहा है और इतने ही पद रिक्त चल रहे हैं। सरल शब्दों में कहें तो एक व्यक्ति जिसे अफसर का वेतन मिल रहा है, उससे काम बाबू का लिया जा रहा है। वेतन बढ़ा दिया गया परंतु पदोन्नति नहीं दी गई। स्थिति यह है कि विभाग में अफसरों की कुर्सियां खालीं हैं परंतु उस कुर्सी के लिए तय किया गया वेतन भुगतान किसी दूसरे बाबू को किया जा रहा है।
सवाल यह है कि आखिर ऐसा किया क्यों जा रहा है। इसी का जवाब तलाश रहा है देवेन्द्र कुमार नायक का यह खुलाखात:
पदोन्नति किसी कर्मचारी की कार्यक्षमता बढाने का एक टूल होता है। प्रत्यक्षतः यह यद्यपि किसी कर्मचारी को उपकृत करता हुआ दिखाई देता है। मगर सत्य यह है कि इस टूल के द्वारा हम उसी कर्मचारी से अधिक दक्षता और उत्साह के साथ अधिक काम ले सकते हैं। और अन्ततोगत्वा इसका लाभ संगठन को अर्थात नियोक्ता को ही मिलता है। इस तथ्य को निजी क्षेत्र के लोग भरपूर उपयोग करते हैं।
मध्य प्रदेश में शासन द्वारा प्रत्येक शासकीय सेवक को 10 वर्ष की सेवावधि के पश्चात पदोन्नति दिये जाने का प्रावधान है। और पदोन्नति न हो पाने की स्थिति में उन्हें समयमान वेतनमान स्वीकृत किया जाता है। कृषि विभाग में कार्यरत तमाम अधिकारी कर्मचारी अपने वर्तमान पद पर 20 से अधिक वर्षाें से कार्यरत रह कर दो समयमान वेतनमान प्राप्त कर चुके हैं अथवा उसकी पात्रता पा चुके हैं। जिसका अर्थ है कि वे अपने वर्तमान पद से दो वरिष्ठ पद आगे का वेतन प्राप्त कर रहे हैं। यह समयमान वेतन भी पदोन्नति का ही एक सुधरा हुआ रूप होता है जिसमें कर्मचारी को उसका आर्थिक लाभ दे दिया जाता है।
सामान्य प्रशासन विभाग के स्पष्ट आदेश हैं कि प्रति वर्ष हर एक पद के लिये दो बार डीपीसी होना चाहिये। मगर कृषि विभाग में दो बार तो क्या एक बार के ही पदोन्नति आदेश लागू हो जाना कृषि कर्मण अवार्ड से कम नहीं है। पदोन्नति व्यवस्था में संलग्न टीम को शायद यह जानकारी नहीं है कि कृषि विभाग में पदोन्नति प्रक्रिया अवाधित रखने से न केवल कर्मचारी लाभान्वित होते हैं बल्कि विभाग के कामों में सकारात्मक गति आती है।
एक तथ्य भी परीक्षण योग्य है कि कुछ अधिकारी लम्बे समय से पदोन्नति के विषय से जुडे रह कर भोपाल में स्थाई रूप से पदोन्नति के मर्मज्ञ हो गये हैं। और वे पदोन्नति प्रक्रिया को जानबूझ कर बाधित करने के आदी हो गये हैं। पदोन्नति से जुडे छोटे कर्मचारी समय समय पर बदलते रहते हैं मगर ये वृहद हाथों वाले बडे अधिकारी संचालनालय की दीवालों में पीपल और वट वृक्ष की तरह जम गये हैं कि इन्हें वहां से हटाना एक धर्मसंकट के समान हेै।
माननीय मुख्यमंत्री जी का कृषि को लाभकारी बनाने का मिशन सफल हो इसके लिये विभाग के कर्मचारी अधिकारी जनों के योगदान को नकारा नही जा सकता है। मगर चन्द बडे अधिकारियों ने अकेले अपनी दम पर कर दिखाने का जैसे जिम्मा ही ले रखा है। इन्होंने पदोन्नति प्रक्रिया को एक औपचारिकता बना दिया है। परिणाम है कि आज कृषि विभाग में विभिन्न संवर्ग के तमाम पद रिक्त पडे हैं। और इन रिक्त पदों के वेतनमान में ही कनिष्ठ पदों पर कार्यरत शासकीय सेवक वर्षो से वेतन प्राप्त कर रहे हैं। इस प्रकार खजाने का खर्चा ज्यों का त्यों है। अर्थात पदोन्नति आदेश के अभाव में हम एक अधिकारी को उप संचालक का वेतन दे रहे हैं और उससे सहायक संचालक का काम ले रहे हैं। और जनता के सामने हमारे नेता लज्जित हैं कि अमुक पद रिक्त पडा है अतः आपका काम ठीक से नहीं करवा पा रहे हैं।
इस अव्यवस्था पर ध्यान दिये बिना विभाग के क्रियाकलापों को गति नही दी जा सकती हेै देखना यह है कि इन तथ्यों को कब तक छिपाया जा सकेगा।