भोपाल। मप्र राज्य सूचना आयोग ने दो मामलों में पुलिस अधिकारियों के वे आदेश खारिज कर दिए हैं, जिनमें उन्होंने रोजनामचे की प्रति देने से इस आधार पर इंकार कर दिया था कि मप्र पुलिस रेगुलेशन के तहत रोजनामचा अप्रकाशित गोपनीय दस्तावेज की श्रेणी में शामिल है।
इसके समर्थन में भारतीय साक्ष्य अधिनियम का हवाला भी दिया गया। सूचना आयुक्त आत्मदीप ने पुलिस की इन दलीलों को खारिज करते हुए आदेष दिया है कि अपीलार्थियों को रोजनामचे की चाही गई सत्यप्रति 7 दिन में निःशुल्क प्रदाय कर आयोग के समक्ष सप्रमाण पालन प्रतिवेदन पेश किया जाए।
भिंड जिले के अपीलार्थी मुकेश शर्मा व ओमप्रकाश शर्मा ने लोक सूचना अधिकारी, पुलिस अधीक्षक कार्यालय, भिंड से पुलिस थाना मौ के रोजनामचा क्रमांक 1054 दि. 27/02/13 की प्रति चाही थी लेकिन लोक सूचना अधिकारी ने चाही गई जानकारी को अप्रकाशित गोपनीय दस्तावेज बताते हुए देने से इंकार कर दिया। इसके विरूद्ध प्रथम अपील करने पर अपीलीय अधिकारी/पुलिस अधीक्षक ने लोक सूचना अधिकारी के निर्णय से सहमत होते हुए प्रथम अपील यह लिख कर रद्द कर दी कि मप्र पुलिस रेगुलेशन के पैरा क्रं. 707 के अनुसार प्रथम सूचना रिपोर्ट के अतिरिक्त विनिमय 633 के अधीन थाने पर रखे जाने वाले सभी रजिस्टर राज्य के कार्यों से संबंधित अप्रकाषित शासकीय लेखा संग्रह की कोटि में आते हैं। तदनुसार रोजनामचा गोपनीय दस्तावेज है। अतः नहीं दिया जा सकता।
पुलिस जैसे अनुशासित विभाग में रेगुलेशन का पालन करना महत्वपूर्ण विषय है, इसलिए रेगुलेशन के विरूद्ध कार्यवाही करना पुलिस विभाग के लिए विधिसंगत नहीं होगा। साक्ष्य की अधिनियम की धारा 123 के तहत भी पुलिस रोजनामचा विशेष अभिलेख है तथा ऐसे दस्तावेजों से किसी को विभाग प्रमुख के आदेश के बिना साक्ष्य में दिए जाने की अपेक्षा नहीं की जा सकेगी।
अपीलीय अधिकारी ने यह भी दलील दी कि सामान्य प्रशासन विभाग द्वारा भी आरटीआई अधिनियम के क्रियान्वयन तथा मार्गदर्शन संबंधी निर्देष जारी किए गए हैं, जिनमें स्पष्ट लेख किया गया है कि लोक सूचना अधिकारी या अपीलीय अधिकारी को जब तक यह समाधान नहीं हो जाता कि गोपनीय प्रतिवेदन का प्रकटन विस्तृत लोकहित में न्यायोचित है, प्रदाय किया जाना/अवलोकन कराया जाना बंधनकारी नहीं है। अपीलार्थी द्वारा पुलिस उपमहानिरीक्षक, चंबल रेंज से लगाई गई गुहार भी बेनतीजा रही।
सूचना एवं अपीलीय अधिकारी के आदेश निरस्त
सूचना आयुक्त आत्मदीप ने सुनवाई उपरांत फैसले में दोनों प्रकरणों में लोक सूचना अधिकारी एवं अपीलीय अधिकारी के आदेषों को निरस्त कर दिया। फैसले में कहा गया कि लोक सूचना अधिकारी द्वारा सूचना आयोग के समक्ष प्रस्तुत मप्र पुलिस रेगुलेषन के पैरा क्रं. 707 एवं अपीलार्थी द्वारा चाहे गए रोजनामचे का अध्ययन किया गया। रोजनामचे में ऐसी कोई जानकारी दर्ज नहीं पाई गई, जिसे प्रदाय करने से किसी पर पक्ष या जांच पर कोई प्रतिकूल प्रभाव होता हो, कोई गोपनीयता भंग होती हो, किसी नियम-कानून का उल्लंघन होता हो अथवा अन्वेषण या अभियोजन की प्रक्रिया पर विपरीत असर पड़ता हो, इसलिए रोजनामचे की प्रति प्रदाय करने में कोई हर्ज नहीं है। रोजनामचा पुलिस द्वारा किए जाने वाले दैनिक कार्यों का दस्तावेज है जिसकी वही प्रति नहीं दी जा सकती जिसमें प्रचलित अन्वेषण का ब्योरा हो। आयोग ने अपीलार्थी के इस तर्क को स्वीकार किए जाने योग्य माना कि वैधानिक स्थिति के अनुसार चाही गई जानकारी आरटीआई अधिनियम की धारा 2 (च) के अंतर्गत सूचना की परिधि में आने से पुलिस रेग्यूलेषन के उपर आरटीआई अधिनियम प्रभावी है। ऐसी स्थिति में आरटीआई अधिनियम के तहत चाही गई जानकारी पुलिस रेग्युलेषन के माध्यम से रोकी नहीं जा सकती है।
एसपी ने कहा, अब देंगे जानकारी
पुलिस अधीक्षक, भिंड की ओर से आयोग को आष्वस्त किया गया कि आदेष के पालन में दोनों अपीलार्थियों को रोजनामचे की सत्यापित प्रति अविलंब मुहैया करा कर पावती आयोग के समक्ष पेष कर दी जाएगी।