शिवराज का नया कानून संविधान को प्रभावित नहीं कर पाएगा

जबलपुर। मध्यप्रदेश तंग करने वाली मुकदमेबाजी (निवारण) अधिनियम-2015 की वैधानिकता को कठघरे में रखने वाली दूसरी जनहित याचिका पर हाईकोर्ट ने महत्वपूर्ण व्यवस्था दी। इसके तहत अभिनिर्धारित किया गया है कि भविष्य में यदि कोई पीड़ित हाईकोर्ट आएगा तो उसकी शिकायत पर संवैधानिक प्रश्न के आधार पर विचार किया जाएगा।

मंगलवार को मामले की सुनवाई के दौरान जनहित याचिकाकर्ता अधिवक्ता आलोक कुमार का पक्ष एडवोकेट विवेकरंजन पाण्डेय ने रखा। उन्होंने दलील दी कि तंग करने वाली मुकदमेबाजी (निवारण) अधिनियम-2015 की वजह से संविधान में प्रदत्त मौलिक अधिकार के हनन की स्थिति चुनौती के योग्य है। यह स्थिति केवल संवैधानिक संशोधन के जरिए ही निर्मित की जा सकती है, वह भी संविधान के मूलभूत ढांचे को नुक्सान पहुंचाए बगैर।

जनहित याचिकाकर्ता की ओर से कहा गया कि मध्यप्रदेश तंग करने वाली मुकदमेबाजी (निवारण) अधिनियम-2015 के कारण जायज मुद्दों पर जनहित की आवाज उठाना भी मुश्किल हो सकता है। इसीलिए इसका विरोध किया गया है। ऐसा इसलिए भी क्योंकि 26 अगस्त को मध्यप्रदेश तंग करने वाली मुकदमेबाजी (निवारण) अधिनियम-2015 की जो अधिसूचना प्रकाशित हुई है, उसके तहत जनहित याचिका दायर करने के लिए महाधिवक्ता की अनुमति अनिवार्य होगी। चूंकि महाधिवक्ता राज्य शासन के मुख्य पैरोकार होते हैं, अतः राज्य के खिलाफ जनहित याचिका पर सुनवाई की अनुमति भला वे कैसे दे पाएंगे? इसके अलावा यह अधिनियम इसलिए भी व्यावहारिक नहीं है कि इसके चलते आम जनता का न्यायालय की शरण लेने का मौलिक अधिकार प्रभावित होगा।

पहले इस तरह किया था खारिज
हाईकोर्ट ने इससे पूर्व नागरिक उपभोक्ता मार्गदर्शक मंच के प्रांताध्यक्ष डॉ.पीजी नाजपांडे की जनहित याचिका वापस लिए जाने के निवेदन को मंजूर करते हुए खारिज कर दी गई थी। हाईकोर्ट ने पूर्व जनहित याचिकाकर्ता को समझाया था कि मध्यप्रदेश तंग करने वाली मुकदमेबाजी (निवारण) अधिनियम-2015सुप्रीम कोर्ट के दिशा-निर्देश पर बनाया गया है। विधि आयोग ने 2005 में अपनी 192 वीं रिपोर्ट प्रस्तुत की, जिसमें तंग करने वाली मुकदमेबाजी (निवारण) अधिनियम बनाए जाने के संबंध में अनुशंसा की गई। उसी को आधार बनाकर सुप्रीम कोर्ट ने दिशा-निर्देश जारी किए, जिनके पालन में मध्यप्रदेश तंग करने वाली मुकदमेबाजी (निवारण) अधिनियम-2015 पारित किया गया। इसके पीछे मूल मंशा न्यायालय का अमूल्य समय बचाना है। साथ ही जनहित याचिका की आड़ में ब्लैकमेलिंग पर ठोस अंकुश सुनिश्चित करना है।

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