कमिश्नर ने करवाई कलेक्टर की रुसवाई

भोपाल। होशंगाबाद कमिश्नर बीके बाथम एवं कलेक्टर हरदा रजनीश श्रीवास्तव के बीच तनातनी शुरू हो गई है। मामला एक भ्रष्टाचार के मामले का है जिसमें कमिश्नर ने पहले तो कमिश्नर की जांच पर भरोसा करते हुए एफआईआर के आदेश दिए फिर कलेक्टर की जांच को गलत बताते हुए कार्रवाई रोकने के लिए एसपी को चिट्ठी लिख डाली। इतना ही नहीं इस मामले की दोबारा जांच भी शुरू करवा दी। भ्रष्टाचार के किसी भी मामले में एफआईआर हो जाने के बाद इस तरह की कार्रवाई का शायद यह पहला उदाहरण है। 

कमिश्नर बीके बाथम ने 2 सितंबर को एसपी हरदा को पत्र क्रमांक 5494/राजस्व/आयुक्त/2015 जारी किया। इसमें लिखा कि जिला सहकारी बैंक केंद्रीय बैंक मर्यादित होशंगाबाद के पत्र क्र 13450 दिनांक 30 जुलाई 15 एवं पत्र क्र 1568 दिनांक 19 अगस्त 15 के माध्यम से आपको (एसपी) प्रकरण दर्ज करने के लिए लिखा था। 

कमिश्नर द्वारा पूर्व में निर्देश दिए गए थे कि प्रकरण की विधिवत जांच के बाद ही एफआईआर दर्ज कराएं। कमिश्नर ने आगे लिखा उन्हें यह जानकारी मिली कि प्रकरण की जांच किए बिना ही एफआईआर दर्ज हुई, जो उनके निर्देशों के विपरीत है। पत्र में यह भी उल्लेख किया गया कि इस प्रकरण की जांच के लिए पीेके सिद्धार्थ संयुक्त आयुक्त सहकारिता नर्मदापुरम संभाग को अधिकृत किया गया है। वे अपना जांच प्रतिवेदन एक माह में देंगे। विस्तृत जांच के बाद ही प्रकरण में अन्य कोई कार्रवाई की जाए। 

कमिश्नर ने यह भी लिखा कि जब तक प्रमाण में जांच पूरी न हो तब तक किसी भी तरह की पुलिस कार्रवाई न की जाए। बिना जांच अपराध कायम करने से बैंक के अधिकारी कर्मचारियों के मनोबल पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। इस विषय को सर्वोच्च प्राथमिकता की श्रेणी में रखें। 

कमिश्नर ने इससे पहले हरदा कलेक्टर को 11 अगस्त 15 को पत्र जारी किया था। 
पत्र क्रमांक 5030/आयुक्त/विकास/2015 में कमिश्नर ने कलेक्टर को लिखा। 
इसमें कमिश्नर ने जिला सहकारी केंद्रीय बैंक मर्यादित होशंगाबाद के सीईओ अभिजीत अग्रवाल के पत्र क्रमांक 1341 दिनांक 30 जुलाई 15 का हवाला दिया। 

बाथम ने पत्र में लिखा कि मुख्य शाखा हरदा स्थित श्री बालाजी बीज उत्पादक एवं कृषि आदान सहकारिता मर्यादित सक्तापुर जिला हरदा के खाते में षडयंत्र पूर्वक राशि जमा करने व निकालने के मामले के दोषियों के विरुद्ध वे तत्काल एफआईआर दर्ज कराएं। इस पत्र के साथ बाथम ने बैंक के 5 दोषी कर्मचारियों के नाम की सूची व सीईओ द्वारा जारी पत्र की प्रति भी संलग्न की थी। 

अब एक ही मामले में विरोधाभाषी आदेश जारी करने वाले कमिश्नर खुद ही जांच की जद में आ एग हैं। सवाल यह है कि ऐसा क्या हुआ जो 43 लाख के घोटाले में एफआईआर हो जाने के बाद कमिश्नर के आदेश बदल गए और कार्रवाई रोक दी गई। यदि आरोपियों को लगता था कि कमिश्नर के आदेश गलत हैं तो वो हाईकोर्ट जा सकते थे परंतु कमिश्नर ने ही एफआईआर कराई, कमिश्नर ने ही रुकवा दी। यह बात लोगों के गले नहीं उतर रही है। 

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