डॉ मोरेश्वर प्रसाद विश्वकर्मा/छिन्दवाडा। सरकार स्वास्थ्य सुविधाओं को लेकर बहुत गंभीर है किन्तु गांव के स्वास्थ्य केन्द्र में चिकित्सक नहीं होने के कारण गांव में स्वास्थ्य व्यवस्था चरमरा गई है, कारण जो भी हो किन्तु सरकार स्वास्थ्य सुविधा को चुस्त दुरूस्त करना चाहती है देखा जाए तो हमारे राज्य में लगभग 35000 बीएएमएस ड्रग्रीधारी है जो कि दूरदराज गांव तक अपनी सेवाऐं देने के लिए तैयार है। सरकार इनकी सेवाऐ लेने के लिए तत्काल कदम उठाये, जिससे ग्रामीण जनसमुदाय को स्वास्थ्य लाभ मिल सके एवं बीएएमएस डॉक्टरों के अनुभव का लाभ मध्यप्रदेश की जनता को मिल सके।
सरकार की लगातार की जा रही अनदेखी का शिकार हो रहे बीएएमएस डाक्टर आज तक सरकार की उपेक्षा का शिकार हो रहे है। जो आयुर्वेद के साथ ऐलोपेथी पढाई भी करते है इसमें इंजेक्शन लगाना, एनेस्थीसिया, पोस्टमार्टम, एमएलसी, यही नहीं प्रसव कराने से लेकर एंटीबायोटिक, एनालजेसिक, एंटीएलर्जिक, एंटीपायरेटिक, इमरजेंसी डग्स,टीकाकरण , एक्स-रे ,सोनोग्राफी ,सीटी स्केन बायोप्सी/साइटोलाजिकल स्टडि आदि बीएएमएस डिग्री के र्दौरान किया जाता है।
1998 में आए सुप्रीम कोर्ट के निर्णय में पंजाब के डॉ मुख्तियार चंद के मामले में फैसला आयुर्वेद डॉक्टर के पक्ष में आया था। जिसमें ऐलोपेथिक दवाओं का पाठयक्रम में अध्ययन करने के आधार पर ऐलोपेथी दवाओं के उपयोग की इजाजत दी गई थी जो आज भी बी0ए0एम0एस में अध्ययन कराया जाता है इसी कारण उपचार की अनुमति दे एवं रिक्त पदों पर नियुक्ति प्रदान की जाये।