राकेश दुबे@प्रतिदिन। आई एस अपने को इस्लाम के साथ जोड़ता है। इतिहास में इस्लाम एक बहुत बड़ी राजनीतिक शक्ति रहा है, जिसकी छाया यूरोप पर भी थी, लेकिन आधुनिक सभ्यता के उदय ने, जो वास्तव में पश्चिमी सभ्यता ही है ने राजनीतिक इस्लाम को कमजोर कर दिया। जो समाज और संस्कृति अपने को समय के अनुसार बदलने में असमर्थ रहते हैं, उनका हश्र यही होता है। इसी कारण से भारत में मुगल साम्राज्य का पराभव हुआ था।
फिलीस्तीनियों पर इजरायल की ज्यादतियों और अमेरिका द्वारा उनका समर्थन मुस्लिम जगत में कांटे की तरह खटकता रहा। चूंकि इस्लाम पश्चिमी सभ्यता पर सीधे आक्रमण नहीं कर सकता था, इसलिए उसने आतंक का रास्ता अपनाया। दिलचस्प है कि उसे सोवियत संघ और बाद में रूस की सहायता मिली, जहां धर्म और ईश्वर के लिए कोई जगह नहीं थी। इसका कारण शीत युद्ध में अमेरिका से रूस की प्रतिद्वंद्विता थी। अंतरराष्ट्रीय राजनीति में बड़े-बड़े गुनाह सीमित राष्ट्रीय स्वार्थ के कारण हुए हैं। दूसरी तरफ, अमेरिका भी कई देशों में तानाशाही का समर्थन करता रहा है।
पश्चिमी देश यह समझते हैं कि वे हवाई हमले करके इस्लामिक स्टेट को नष्ट कर सकते हैं, तो वे भ्रम में जी रहे हैं। वियतनाम पर हमला करके अमेरिका ने कम्युनिज्म को रोक नहीं लिया, न ही इराक को युद्ध में पराजित कर उसे अपने शिविर में शामिल कर लिया, न ही अफगानिस्तान पर हमला कर तालिबान को खत्म कर दिया। इन सब कार्रवाइयों से दुनिया भर में अमेरिका का विरोध बढ़ा ही है। इसलिए जब इस्लामिक स्टेट या ऐसे संगठनों पर सैनिक अभियान चलाए जाते हैं, तो मानो आतंकवाद को औचित्य मिल जाता है, और आतंकवादी पहले से ज्यादा प्रतिबद्धता के साथ अपने कारनामों को अंजाम देने लगते हैं।
आतंकवादियों को तो निर्दोष लोगों की जान लेने में मजा आता है, लेकिन सरकारें ऐसा क्यों करें? इसलिए आतंकवाद के विरुद्ध संघर्ष का पहला सबक यह है कि इस संघर्ष को कम से कम हिंसक बनाया जाए। कोई भी राज्य दूसरे राज्य में घुस कर आतंकवादियों पर हमला न करे। बेहतर होगा कि प्रति-आतंकवादी एक्शन के लिए संयुक्त राष्ट्र के तत्वावधान में कोई मोर्चा गठित किया जाए। इस अंतरराष्ट्रीय मोर्चे के माध्यम से सभी देश तथ्यों और आंकड़ों को एक जगह जमा कर सकते हैं, और शेअर भी कर सकते हैं।
आतंकवाद बहुत जल्द खत्म हो जाएगा, यह उम्मीद एक भ्रांति है। आतंकवाद न एक दिन में पैदा होता है, न एक दिन में मरता है। इसलिए मुख्य बात यह है कि वे ऐतिहासिक कारण कैसे पैदा किए जाएं जिनमें आतंकवाद एक छीजती हुई शक्ति बन जाए।
श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
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