भोपाल। यदि आप कारोबार को बढ़ाना चाहते हैं तो व्यापारियों को मुफीद माहौल देना होगा। सरकारी टैक्स की मार से उन्हे मुक्त करना होगा। तभी वह तरक्की कर सकेगा। दुबई इसका ताजा उदाहरण है जहां किसी भी नागरिक पर कोई टैक्स नहीं लगता, लेकिन क्या आप जानते हैं आज से 300 साल पहले भारत में इस तरह का एक टैक्स फ्री राज्य हुआ करता था। शायद यह दुनिया का पहला टैक्स फ्री राज्य था।
ऐतिहासिक दस्तावेज बताते हैं कि इंदौर के एक विजनरी शख्स ने आज से तीन सौ साल पहले इसकी शुरुआत कर दी थी। ये शख्स थे राव राजा चौधरी नन्दलाल मंडलोई।
उनके वंशज श्रीकांत जमींदार अपने पास उपलब्ध दस्तावेजों के आधार पर बताते हैं कि नन्दलाल चौधरी ने सन 1716 में तत्कालीन मुगल बादशाह को एक पत्र लिखकर ये मांग की थी कि मालवा के इंदौर और उज्जैन सूबे में नन्दलालपुरा के नाम से बसाए गए नए बाजार में व्यापार करने वालों से कोई कर या शुल्क नहीं लिया जाए। उनकी इस मांग को तत्कालीन मुगल बादशाह ने स्वीकार कर फरमान जारी किया था। ये उस समय का पहला टैक्स फ्री जोन था। उनके इस विजनरी कदम से इंदौर में व्यापार भी बढ़ा और बसाहट भी।
इंदौर के संस्थापक और पहले शासक थे राव नन्दलाल चौधरी
राव नन्दलाल चौधरी को सन 1700 के आसपास तत्कालीन मुगल बादशाह के वजीर सैयद अब्दुल्ला खान ने एक परवाना लिखकर कम्पेल और इंदौर की मनसबदारी दी थी। इसके पहले इस इलाके की मनसबदारी उनके पूर्वज के पास ही थी। इस दस्तावेज के आधार पर ये साबित होता है कि इंदौर के पहले शासक राव नन्दलाल थे।
बाद में पेशवाओं ने अपने सूबेदार मल्हाराव होलकर की मदद लेकर रावराजा नंदलाल मंडलोई से मित्रता कर ली। पुरातत्व विभाग में उपलब्ध दस्तावेजों के मुताबिक 1732 में मल्हारराव होलकर को इंदौर की जागीरदारी सौंपी गई, लेकिन तब भी शासक रावराज नंदलाल मंडलोई ही थे।