राकेश दुबे@प्रतिदिन। पेरिस में हुआ हमला भारत को चौकन्ना रहने की भी सीख दे रहा है। हमारी सरकार को समझना होगा कि फ्रांस, अमेरिका जैसे देश हमारी तुलना में शक्तिशाली भी हैं और विकसित भी। इतना ही नहीं, उनके पड़ोसी आतंकियों का पोषण नहीं करते। वे हमारी तुलना में ज्यादा सुरक्षित हैं। आतंकी कभी वर्ल्ड ट्रेड सेंटर को धराशायी करने में सफल हो जाते हैं, तो कभीं सुरक्षा की दृष्टी से चाक-चौबंद नगरो में धमाके कर देते हैं। हमारी परिस्थिति उनसे अलग है, इसलिए हमें ज्यादा सावधान रहने की जरूरत है। फ्रांस में ही इस साल यह तीसरा बड़ा हमला है। विश्व के परिदृश्य को देखें तो आतंकवादियों की पहुंच से कोई देश दूर नहीं है। मुंबई जैसा हमला अब कहीं और कभी भी हो सकता है ।
हमने मुम्बई हमले से कोई सबक नहीं सीखा। आतंकियों ने मुंबई में जब दहशत फैलाई थी, तब हमने काफी सक्रियता दिखाई। मगर उस समय की गई कुछ तत्काल बाद हम पूरी तरह उदासीन हो गए। पेरिस में हुए हमले से तो कम से कम हमें जाग ही जाना चाहिए। इस हमले को हम अपने दुश्मनों पर दबाव डालने का मौका बना सकते हैं। हमारी सरकार और हमारे राजनयिकों को चाहिए कि वे उन देशों का एक समूह बनाने की कोशिश करें, जिन्होंने आतंकी हमलों को झेला है या जो इन हमलों के निशाने पर हैं। हमें इससे पहले यह मौका मुंबई हमले के बाद भी मिला था। मगर पाकिस्तान पर दबाव डालने में असफल रहे ।
यहां संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद का प्रस्ताव १२६७ का उल्लेख भी जरूरी है। इस प्रस्ताव को १५ अक्तूबर, १९९९ को सर्वसम्मति से पारित किया गया था। अफगानिस्तान की तत्कालीन स्थिति के बहाने पारित इस प्रस्ताव में यह प्रावधान है कि सभ्य समाज को आतंकवाद के खिलाफ पूरी सक्रियता से काम करना चाहिए, और अल-कायदा, तालिबान जैसे आतंकी संगठनों की न तो आर्थिक मदद करनी चाहिए, और न ही उन्हें संरक्षण देना चाहिए। इस प्रस्ताव का समर्थन अमेरिका ने भी किया है, और पाकिस्तान ने भी। मगर इसे लेकर कुछ देश कितने गंभीर हैं, इसका पता इसी से चलता है कि ओसामा बिन लादेन पर कार्रवाई करने अमेरिकी सैनिक तत्काल वहां पहुंच जाते हैं, और हाफिज सईद जैसे आतंकियों के खिलाफ सुबूत काफी न होने का बहाना बनाया जाता है। अगर विकसित देश सही अर्थों में आतंकवाद का मुकाबला करना चाहते हैं, तो उन्हें संयुक्त राष्ट्र का यह प्रस्ताव ईमानदारी से अपनाना चाहिए। हालांकि जिस तरह आतंकी संगठन वहां दहशत फैलाने में कामयाब हो रहे हैं, उम्मीद है कि पूरी दुनिया इस प्रस्ताव को लागू करने की दिशा में गंभीरता से आगे बढ़ेगी।और हमारे पास और अभी निंदा करने के अतिरिक्त कोई विकल्प नहीं है।
श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
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