उपदेश अवस्थी@लावारिस शहर। नोबेल क्या मिला तुम्हारे तो दिल का दर्द ही मिट गया। यहां वहां कार्यक्रमों में बस मुस्कुराते ही मिल रहे हो। बच्चों को वो दर्द, वो पीढ़ा क्या अब उसका अहसास नहीं होता। उनके दर्द में कराहने का मन नहीं करता। क्या नोबेल ही तुम्हारा टारगेट था कैलाश।
क्षमा करना, शब्द तीखे और जहर बुझे हो सकते हैं परंतु निकल रहे हैं, क्या करूं। वहां पन्ना में एक मंत्री गरीब बच्चे को लात मार रही है और तुम जिसे बच्चों को बचाने के लिए नोबेल मिला, पता नहीं कहा गायब हो। मुझे मालूम है कि यह तुम्हारी कानूनी जिम्मेदारी नहीं है परंतु धर्म तो है। वही धर्म जिसके लिए तुम्हे दुनिया के सबसे बड़े सम्मान से नवाजा गया। जिसके मिलने पर हमें भी गर्व हुआ कि कैलाश सत्यार्थी, मेरे मध्यप्रदेश से आते हैं। मुझे ठीक से याद है वो दिन 'घोषणा तुम्हारे लिए नोबेल की हुई थी, स्टाफ को समोसे मैने खिलाए।' मेरा तुम्हारा कोई पुराना रिश्ता नहीं है, फिर एक खुशी थी, क्योंकि तुम मेरे मध्यप्रदेश से हो।
लेकिन लगता है अब तुम ग्लोबल हो गए हो। बस मंच पर सजा हुआ एक गुल्दस्ता। तुम्हारा संघर्ष एक तमगे की चमक में खो गया है या फिर सरकारी सुविधाओं के लालच में तुम अपने दिल की बात नहीं कर पा रहे हो।
सच जो भी हो, लेकिन तुमने बड़ा दुखी कर दिया कैलाश। उस दिन सर गर्व से ऊंचा हो गया था, आज....।