सिंहासनों के नीचे कराहता किसान

Bhopal Samachar
सुशील कुमार शर्मा। "बस हमरो गल्लो भर सस्तो हे बाकीं सभै चीजें महंगी हो रई हैं।"कृषि प्रधान देश के अन्नदाता की आँखों के आंसू तंत्र और राजनीति को भले ही न दिख रहे हों लेकिन वो अनवरत बह रहे हैं।उसकी पीड़ा शब्दों पर सवार हो कर अंदर तक तैर गई। इतने सालों के बाद भी भारत के अन्नदाता असहाय है दूसरों पर आश्रित है। प्रकृति,राजनीति,तंत्र से अकेला लड़ता हुआ बेबस ,असहाय ,घुटता हुआ ,मौत के मुंह में जाने को विवश।आज भी आज़ादी के 68  साल बाद भी अधिकांश भारतीय कृषि इन्द्र देव के सहारे ही चलती है। इंद्र देवता के रूठ जाने पर सूखा ,कीमतों में वृद्धि ,कर्ज का अप्रत्याशित बोझ ,बैंकों के चक्कर,बिचोलियों एवं साहूकारों के घेरे में फँस कर छोटा किसान या तो जमीन बेचनें पर मजबूर है या आत्महत्या की ओर अग्रसर है।

आधिकारिक आंकलनो में प्रति 30 मिनिट में एक किसान आत्महत्या कर रहा है ,इसमें छोटे एवं मझोले किसान हैं जो आर्थिक तंगी की सूरत में अपनी जान गँवा रहे हैं। अगर आत्महत्या के मामलों की सघन जाँच की जावे तो ऐसे किसानों की संख्या ज्यादा निकलेगी जो मजदूर एवं शोषित वर्ग के हैं एवं जिनका जमीन पर स्वामित्व तो है लेकिन उनकी जमीन किसी साहूकार एवं बड़े किसान के पास गिरवी रखी है।

  कृषि विपणन व्यवस्था को सीमांत किसानों के लिए उपयोगी बनाने की आवश्यकता ताकि किसान बिचोलियों की मार से बच सके। लघु एवं सीमांत किसानों को सब्जी एवं फल उत्पादन के साथ साथ टपक सिचांई प्रबंधन का समावेशीकरण कर कृषि को प्रोन्नत करने के  प्रशिक्षण की आवश्यकता है। पर्याप्त जल संसाधन होने के बाद भी किसानो के खेत सूखे  क्यों रह जाते है ?इसका मुख्या कारण  जल का उचित प्रबंधन का अभाव है।2006 में बनी स्वामीनाथन कमेटी ने सिफारिश  की थी की न्यूनतम समर्थन मूल्य ,बाजार मूल्य का 50 % से अधिक होना चाहिए एवं इस 50 %की वृद्धि को किसान का मेहनताना माना जाना चाहिए। लेकिन स्थिति बिलकुल अलग है न्यूनतम समर्थन मूल्य एवं बाजार मूल्य में ज्यादा अंतर नहीं है इस कारण किसान को लाभांश नहीं मिल पा  रहा है।

1998 से लेकर 2009 तक करीब 3 करोड़ से ऊपर किसान क्रेडिट कार्ड किसानों को जारी किया जा चुके हैं एवं करीब 1 लाख 97 हज़ार करोड़ रूपये इन क्रेडिट कार्ड के द्वारा किसानो के पास कृषि संवर्धन के लिए पहुँच चूका है ,लेकिन सरकार के पास इस बात  का कोई सही तथ्यात्मक आंकड़ा नहीं है की इतनी भारी राशि का कितना भाग कृषि लागत के रूप में प्रयोग किया गया है। सरकारों को इस बात का नियंत्रण रखना  चाहिए की किसान क्रेडिट कार्ड के पैसों का उपयोग लघु किसान खेती की लागत के रूप में ही करें ताकि वो अधिक पैदावार लेकर खुद पूँजी खड़ी कर सके।

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