भोपाल। जिस अफसरों के हाथों में निरीह जानवरों और बहुमूल्य जंगलों की जिंदगी सौंप रखी है, उन अफसरों की मानसिकता और बेतुकी सोच एक बयान ने उजागर कर दी। मुख्य वन्य प्राणी अभिरक्षक रवि श्रीवास्तव ने कहा है कि लोग तो घरों में सुरक्षित नहीं हैं, तो फिर उन्हें हिंसक जानवरों से कैसे बचाया जा सकता है।
श्रीवास्तव से पूछा गया था कि वे बाघ और लोगों की सुरक्षा के लिए क्या कर रहे हैं और कलियासोत डेम के आसपास घूम रहे बाघ के लिए वन विभाग की क्या प्लानिंग है? इस पर उन्होंने कहा कि तुरंत कुछ नहीं कहा जा सकता, यह स्थितियों पर निर्भर करता है। हालांकि उन्होंने क्षेत्र में बाघ की सक्रियता पहले से होने की जानकारी जरूर दी। जब उनसे बाघ की शिफ्टिंग के बारे में पूछा गया तो उन्होंने कुछ नहीं कहा। इस दौरान वन विभाग के अधिकारी कई सवालों के संतोषजनक उत्तर नहीं दे पाए, बल्कि वे चर्चा के दौरान सवालों से बचते नजर आए।
इंसान देखने का आदी हो रहा बाघ, कभी भी हो सकती है घटना
वन विभाग के पीसीसीएफ नरेंद्र कुमार ने कहा कि जिस इलाके में बाघ का मूवमेंट है वह नेशनल पार्क नहीं है। वह इंसान देखने का आदी हो रहा है इसलिए कभी भी घटना घट सकती है।
श्रीवास्तव को याद दिलाओ उनकी जिम्मेदारी
अब मुख्य सचिव की जिम्मेदारी है कि वो बेतुका बयान देने वाले मुख्य वन्य प्राणी अभिरक्षक रवि श्रीवास्तव को उनकी जिम्मेदारी याद दिलाएं। याद दिलाएं कि वो फारेस्ट गार्ड नहीं हैं, आईएफएस हैं, 8वीं पास नहीं है। यह उनकी पदीय जिम्मेदारी है कि वो इंसानों से जानवरों और जानवरों से इंसानों की रक्षा करें। बंगला, गाड़ी और तमाम सुविधाओं सहित मौटा वेतन उन्हें बेतुके बयानों के लिए नहीं दिया जाता। यदि इसके बाद भी समझ नहीं आता तो श्रीवास्तव की सेवाएं केन्द्र को वापस कर दें। ऐसी सोच वाले अफसर वन और वन्यप्राणियों के लिए काफी खतरनाक हो सकते हैं।