भोपाल। अब तय अवधि के बाद खेती की जमीन पर बटाइदार कब्जा जमाता है तो उसे 3 साल की जेल और एक हजार स्र्पए प्रतिमाह तक का जुर्माना लग सकता है। इस संबंध में राजस्व विभाग ने बटाई पर खेती की जमीन देने के कानून का मसौदा तैयार किया है। इसमें राजस्व भू-संहिता की कई धाराओं में बदलाव प्रस्तावित है। जल्द ही आला अफसरों की बैठक में इसके प्रावधानों पर चर्चा कर इसे अंतिम रूप दिया जाएगा, इसके बाद इसे कैबिनेट के लिए भेजेंगे।
अनुबंध सादे कागज पर होगा
प्रस्तावित कानून के हिसाब से अब खेती की जमीन को कम से कम 1 वर्ष और अधिकतम 5 वर्ष के लिए बटाई पर दिया जा सकेगा। इसके लिए दोनों पक्षों को ग्राम पंचायत और तहसीलदार को अपने अनुबंध की प्रति देना होगी। अनुबंध भी सादे कागज पर होगा। वर्तमान कानून के हिसाब से यदि कोई बटाइदार किसी जमीन को लगातार 3 साल तक जोतता है तो वह उसका मालिक हो जाता है। इसके चलते किसान अपनी कृषि भूमि बटाई पर देने से पहले कोई लिखित अनुबंध नहीं देता है। इतना ही नहीं हर वर्ष वह बटाइदार को भी बदलता रहता है। प्रस्तावित कानून में खेत की जमीन के मालिक और बटाइदार दोनों के हितों को ध्यान में रखा गया है। इसमें जहां खेती की जमीन का मालिकाना हक सुरक्षित रहेगा, वहीं प्राकृतिक आपदा में होने वाले नुकसान पर सरकार से मिलने वाली राहत राशि का हकदार बटाइदार होगा। इसके अलावा तय समय से पहले कृषि भूमि मालिक उसे अपनी जमीन से नहीं हटा सकेगा।
इसलिए बनाया जा रहा कानून
छोटे किसान जमीन के फेर में दूसरा काम नहीं कर पाते। प्रस्तावित कानून में छोटा किसान अपनी खेती की जमीन बटाई पर देकर निश्चित होकर दूसरे काम कर सकता है। इससे उसकी आमदनी में इजाफा होगा।
खेती की जमीन का मालिक प्रस्तावित कानून में जमीन को बटाई के अलावा ठेके पर भी दे सकेगा। इसमें अवध्ाि वही रहेगी।
यह होगी अनुबंध की प्रक्रिया
प्रस्तावित कानून के अनुसार खेत की जमीन का मालिक और बटाइदार सादे कागज पर अनुबंध्ा तैयार कर ग्राम पंचायत और तहसीलदार कार्यालय में एक-एक प्रति जमा कराएंगे। दोनों जगह से पावती लेकर एक-एक प्रति दोनों रखेंगे।
यह अनुबंध 1 से 5 वर्ष तक के लिए किया जा सकेगा। दोनों पक्ष सहमत होने पर इसे आगे बढ़ाया जा सकता है।
अनुबंध के बाद कृषि में होने वाले नुकसान की स्थिति में बटाइदार को अधिकार होगा कि वह फसल बीमा और सरकार की राहत राशि ले सके।
विवाद की स्थिति में दोनों पक्ष तहसीलदार के यहां आवेदन कर सकेंगे। संतुष्टि न मिलने पर पहले संभागायुक्त फिर राजस्व मंडल में अपील की जा सकेगी। इसके बाद ही कोर्ट में जा सकेंगे। कोई भी पक्ष सीध्ो सिविल न्यायालय में मामला दायर नहीं कर सकेगा।