नईदिल्ली। मद्रास हाईकोर्ट ने गुरुवार को एक अहम फैसला देते हुए कहा कि हिंदू महिला और ईसाई पुरुष की शादी तब तक वैध नहीं है, जब तक दोनों में से कोई एक धर्म परिवर्तन नहीं करता। कोर्ट ने यह फैसला महिला के परिजनों द्वारा दायर याचिका पर दिया।
हिंदू महिला के परिजनों द्वारा दाखिल बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका को खारिज करते हुए जस्टिस पी.आर शिवकुमार और वी.एस रवि ने कहा कि अगर यह जोड़ा हिंदू रिवाजों के अनुसार शादी करना चाहता था तो पुरुष को हिंदू धर्म अपनाना चाहिए था। अगर महिला ईसाई रिवाजों के अनुसार शादी करना चाहती थी तो उसे ईसाई धर्म ग्रहण करना चाहिए था। साथ ही पीठ ने यह भी कहा कि अगर वे दोनों अपना-अपना धर्म बनाए रखना चाहते थे, तो विकल्प के रूप में उनकी शादी विशेष विवाह अधिनियम 1954 के तहत पंजीकृत कराई जानी चाहिए थी।
उधर, याचिकाकर्ता का कहना था कि उसने पलानी में एक मंदिर में शादी की थी। इस पर कोर्ट ने कहा कि अगर पुरुष ने धर्म परिवर्तन नहीं किया है तो हिंदू कानून के अनुसार शादी कैसे वैध हो सकती है। हालांकि, महिला ने तुरंत पुरुष के साथ जाने का फैसला किया तो कोर्ट ने कहा, वयस्क होने के नाते वह जहां चाहे जा सकती है। कानूनन उसे देखभाल और संरक्षण की जरूरत नहीं है।