शिवराज सिंह चौहान। मध्यप्रदेश के 60वें स्थापना दिवस पर सभी प्रदेशवासियों को दिल से शुभकामनाएं।
इस साल स्थापना दिवस की खुशियों पर सूखे से उपजी विपत्ति की छाया अवश्य है, लेकिन संकट का मिल-जुलकर सामना करने तथा उससे उबरने की प्रदेशवासियों की क्षमता पर मुझे पूरा भरोसा है। पहले की तरह इस संकट से भी हम मिल-जुलकर उबरेंगें।
अक्सर सोचता हूं कि हमारा प्रदेश कितना अदभुत और अनूठा है। यह लघु भारत देश के हृदय स्थल पर है। एक ऐसा खूबसूरत गुलदस्ता, जिसमें अलग-अलग रंग और खुशबू के फूल सजे हैं। साहित्य, कला, संस्कृति,समृद्धि, शांतिप्रियता, उद्यमशीलता, अतिथि सत्कार और सामाजिक सौहार्द सभी में हमारा प्रदेश बेजोड़ है।
प्रकृति ने अपार संपदा यहां की धरती पर उदारता से लुटाई है, इसीलिये इसे रत्नगर्भा भी कहा जाता है। मां नर्मदा, क्षिप्रा, मंदाकिनी, बेतवा, ताप्ती, सोन और चंबल जैसी पवित्र नदियां इस धरा को सींचती हैं। वनस्पतियों से भरपूर सतपुड़ा और विंध्याचल जैसी अलौकिक पर्वत शृंखलाएं हैं। खजुराहो, सांची और भीमबैठिका जैसे विश्व विरासत स्थल व राष्ट्रीय उद्यान हैं। भगवान राम के वनवास काल की लीलाओं का साक्षी चित्रकूट और भगवान श्रीकृष्ण की प्रारंभिक शिक्षा स्थली उज्जैन में सांदीपनि आश्रम के रूप में स्थित है। उज्जैन महाकालेश्वर में और ओंकारेश्वर में ज्योतिर्लिंग प्रतिष्ठित हैं। मालवा, निमाड़, विंध्य, बघेलखंड, महाकौशल और मध्य भारत अंचल की अपनी-अपनी सांस्कृतिक धाराएं, कला-वैभव और ऐतिहासिक विरासतें हैं। जिन पर गर्व है।
मेरे मन में अक्सर विचार आता है कि इतना सब होते हुए भी मध्यप्रदेश पिछड़ा क्यों रहा? फिर समझ आया कि विकास के लिए बुनियादी ढांचे की जरूरत है। इसके लिए मैंने सबसे पहले अधोसंरचना के विकास पर ध्यान दिया। इसी का परिणाम है कि औद्योगिकीकरण तथा अन्य आर्थिक गतिविधियों में तेजी आई। देश-दुनिया को आकर्षित किया। कृषि में विस्तार हुआ। सिंचाई में अभूतपूर्व वृद्धि की गई। मप्र ‘बीमारू' राज्यों की श्रेणी से बाहर आया। फिर भी जब तक विकसित राज्यों की पंक्ति में नहीं आ जाते, चैन से नहीं बैठूंगा। मैं सभी प्रदेशवासियों का आव्हान करता हूं कि वे मध्यप्रदेश को प्रगति के पथ पर और आगे ले जाने में सक्रिय रूप से सहयोगी बने रहें। प्रदेश के विकास से देश के विकास को भी गति मिलेगी।
- लेखक मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री हैं।