राकेश दुबे प्रतिदिन। एक ओर महंगाई के कारण आम आदमी की बढ़तीं मुश्किलों का संकेत दे रही हैं, वहीं दूसरी ओर सरकार द्वारा शिक्षा, स्वास्थ्य और सामाजिक सुरक्षा में बजट आवंटन घटाए जाने और नये कर लगाने से आम आदमी की आर्थिक-सामाजिक चिंताओं का दायरा बढ़ता ही जा रहा है। नवीनतम सरकारी आंकड़ों के मुताबिक उपभोक्ता मूल्य सूचकांक आधारित मुद्रास्फीति अक्टूबर, 2015 में बढ़ गई है| खाद्य वस्तुएं महंगी होने की वजह से सितम्बर महीने में खुदरा मुद्रास्फीति बढ़कर 5 प्रतिशत पर पहुंच गई जो पूर्ववर्ती सितम्बर महीने में 4.41 प्रतिशत थी। पिछले दिनों एसोचैम द्वारा बढ़ती महंगाई पर प्रकाशित रिपोर्ट में कहा गया है कि महंगाई आम आदमी ही नहीं, निम्न मध्यम वर्ग को भी चिंताग्रस्त कर रही है।
जहां एक ओर महंगाई से आम आदमी परेशान है, वहीं दूसरी ओर घटती सामाजिक सुरक्षा जनसामान्य के लिए चिंता का कारण है. आर्थिक-सामाजिक संतुलन और सुरक्षा के क्षेत्र से जुड़े वैश्विक शोध संगठन ग्लोबल एच वाच इंडेक्स द्वारा लोगों की आय, सुरक्षा, स्वास्थ्य, शिक्षा और रोजगार क्षेत्रों के व्यापक अध्ययन पर आधारित वैश्विक आर्थिक-सामाजिक सुरक्षा रिपोर्ट 2015 प्रकाशित की गई है। इसमें दी गई सूची में 96 देशों में भारत को ७१ वे स्थान पर रखा गया है| इसी तरह पिछले दिनों विश्व आर्थिक मंच द्वारा प्रकाशित सामाजिक सुरक्षा रिपोर्ट 2015 में कहा गया है कि भारत कमजोर वर्ग की मुश्किलें और आय की असमानता घटाने के बड़े मौके खो रहा है|
इसमें कोई दो मत नहीं कि देश में एक ओर प्रति व्यक्ति आय और राष्ट्रीय आय बढ़ रही है, करोड़पतियों की संख्या भी तेजी से बढ़ रही है लेकिन वहीं समाज के कमजोर वर्ग की मुश्किलें भी बढ़ती जा रही हैं| कैपजेमिनी और आरबीसी वेल्थ मैनेजमेंट द्वारा सितम्बर, २०१५ में जारी वर्ल्ड वेल्थ रिपोर्ट के अनुसार २०१४ में भारत १० लाख डॉलर यानी ६.६० करोड़ रुपए से अधिक की संपत्ति रखने वाले व्यक्तियों की संख्या के मामले में दुनिया में ११ वें स्थान पर है. देश में ऐसे लोगों की संख्या १.९८ ००० है, जबकि २०१३ में यह आंकड़ा १,५६, ००० का था. ४३ ५१ ००० करोड़पतियों के साथ अमेरिका इस सूची में शीर्ष पर है।