भोपाल। यूं तो मुख्यमंत्री खुद पिछड़ावर्ग से आते हैं और आरक्षण की जोरदार वकालत भी करते हैं परंतु उनके ही प्रदेश में छुआछूत आज तक नहीं मिट पाई। कमोबेश इस सरकार ने कोई कोशिश भी नहीं की। धार जिले के पीथमपुर से 15 किलोमीटर दूर एक गांव है सलावड़। यहां दलितों पर कई तरह की पाबंदियां हैं। वो यहां बारात नहीं निकाल सकते, शवयात्रा भी नहीं निकाल सकते। एक दलित ने महीने भर पहले कोशिश की थी। ठाकुरों ने इस कदर पीटा कि दर्द आज तक होता है।
3500 की जनसंख्या वाले गांव सुलावड़ में दलित ग्रामीण घुट-घुटकर जीने को मजबूर हैं। पीड़ितों की मानें तो गांव में दो रास्ते हैं एक पक्का जो सवर्णों के इलाके से गुजरता है और दूसरा कच्चा रास्ता है जो दलितों के लिए है। ऐसे में अगर कोई ठाकुरों के रास्ते से निकलने की कोशिश करता है तो उसका हुक्का-पानी बंद कर दिया जाता है।
गांव के एक दलित मांगीलाल ने बताया कि एक महीने पहले उसकी भाभी का देहांत हो गया था। जिसके बाद शवयात्रा को परंपरा के अनुसार वो गांव में से ले जाना चाहता था पर सवर्णों ने ऐसा नहीं होने दिया।
इसका विरोध करने पर उन पर पत्थरों और लाठियों से हमला कर दिया गया, जिसमें कई लोग घायल हो गए। इतना ही नहीं हुक्का-पानी भी बंद कर दिया गया। इस घटना के बाद से ही दलित ग्रामीण पक्के रास्ते से निकलने की हिम्मत नहीं कर पाते।
शवयात्रा ही नहीं बल्कि दलितों को खुशी भी सवर्णों की इजाजत से मनानी पड़ती है। यदि किसी के घर में शादी हो तो उसे बारात भी बाहरी कच्चे रास्ते से ही ले जानी पड़ती है।