राकेश दुबे@प्रतिदिन। सीरिया में राष्ट्रपति बशर अल-असद की सरकार के पक्ष में पुतिन के खुले सैनिक हस्तक्षेप के बाद पश्चिमी देश पुतिन को खलनायक मानने लहे थे और सीधे-सीधे टकराव की स्थिति बनने लगी थी। दोनों पक्षों का एक-दूसरे पर आरोप यह था कि वह आईएस के खिलाफ लड़ने की बजाय अपने राजनीतिक हित साध रहे हैं। अब फ्रांस, अमेरिका और अन्य पश्चिमी देशों को लग रहा है कि पुतिन आईएस के खिलाफ जिस साझा रणनीति के लिए जोर डाल रहे थे, उसमें ही समझदारी है।
पुतिन ने यह कहा है कि 40 देशों से आईएस को आर्थिक मदद मिल रही है, और इनमें ऐसे भी देश हैं, जो जी-20 के सदस्य हैं। उन्होंने यह भी कहा है कि आईएस के तेल के धंधे पर रोक लगाना जरूरी है, वह उसकी आय का बड़ा साधन है। पुतिन ने उन देशों के नाम तो नहीं बताए, लेकिन कुछ के नामों का अंदाजा लगाना मुश्किल नहीं है। पहले भी इस तरह की खबरें आई थीं कि सऊदी अरब, कुवैत और कतर के कुछ लोग आईएस को पैसा दे रहे हैं।
इसके अलावा कट्टर वहाबी इस्लाम के समर्थक लोग हो सकते हैं, जो आईएस के लिए पैसा जुटाते हैं। एक स्तर पर पैसा मुहैया करवाने वाले इन तत्वों से सख्ती से निपटना होगा, तो दूसरी ओर यह भी जरूरी है कि अवैध पैसे के लेन-देन का जो अंतरराष्ट्रीय तंत्र है, उसे नष्ट किया जाए। इसमें हवाला जैसे गैर-कानूनी तंत्र हैं, तो अंतरराष्ट्रीय बैंकिंग व्यवस्था में भी ऐसे तत्व हैं, जो मुनाफे की खातिर अपराध, नशीले पदार्थों की तस्करी और आतंकवाद से जुड़े पैसे के लेन-देन में शामिल हैं। अमेरिका पर 9/11 के आतंकी हमले के बाद दुनिया ने इस ओर गंभीरता से ध्यान देना शुरू किया। साल 2009 की वैश्विक मंदी के बाद बड़े देशों को यह महसूस हुआ कि अवैध पैसे का कारोबार अंतरराष्ट्रीय अर्थव्यवस्था को प्रभावित करने की स्थिति में आ गया है और यह अंतरराष्ट्रीय अर्थव्यवस्था को खतरे में डाल सकता है।
जरूरी है कि सारे देश मिलकर आईएस का मुकाबला करें। अब तक पश्चिमी देश आईएस के इराकी ठिकानों पर तो हमले कर रहे थे, लेकिन सीरिया में ऐसा करने से बच रहे थे, क्योंकि उन्हें लग रहा था कि इससे असद सरकार मजबूत हो जाएगी। रूस पर पश्चिमी देश यही आरोप लगाते रहे हैं कि उसकी दिलचस्पी आईएस से लड़ने में नहीं, बल्कि असद की सरकार को बचाने में है। तुर्की आईएस से नहीं, बल्कि आईएस से लड़ने वाले कुर्दों के खिलाफ ज्यादा सक्रिय है। सुन्नी अरब देश शिया ईरान का प्रभाव नहीं बढ़ने देना चाहते, इसलिए सुन्नी आईएस के प्रति नरम रवैया अपनाते रहे हैं। अगर सब मिलकर आईएस को खत्म करना अपनी पहली जिम्मेदारी नहीं मानते, तो दुनिया पर खतरा बढ़ता रहेगा।
श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
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