सरकार के खिलाफ एकजुट हो रहे हैं पुलिस कर्मचारी

Bhopal Samachar
लखनऊ। वेतन विसंगति को दुरुस्त और पुलिस के लिए एसोसिएशन बनाने की मांग प्रदेश पुलिस में जोर पकड़ती जा रही है। बीते महीने प्रदेश के कुछ जिलों में पुलिस ने काली पट्टी बांधकर सरकार का विरोध किया था, जो अब प्रदेशव्यापी होता जा रहा है। बर्खास्त पुलिस कर्मियों द्वारा शुरू की गई इस लड़ाई में कार्यरत पुलिस कर्मी भी शामिल हो रहे हैं। सरकार को मिले इनपुट्स की माने तो प्रदेश भर के पुलिस कर्मी 23 नवंबर को हाथों में काली पट्टी बांधकर सरकार का विरोध करने की योजना बना रहे हैं।

प्रदेश के पुलिस कर्मियों द्वारा सरकार के विरोध में काली पट्टी बांधकर विरोध प्रदर्शन करने की सूचना के बाद से महकमा उनसे सख्ती से निपटने की योजना बना रहा है। एडीजी लॉ एंड आर्डर दलजीत सिंह चौधरी ने बताया कि मामले की जानकारी के बाद एलआईयू और हर जिले से इसकी रिपोर्ट मंगवाई जा रही है।

देश के दूसरे राज्यों में पुलिस यूनियन की तर्ज पर यूपी के पुलिसकर्मियोंं ने भी समस्याओं के खिलाफ आवाज बुलंद करने के लिए 90 के दशक में यूनियन गठित करने की पहल की थी। इसके लिए उन्होंने रजिस्ट्रार फर्म एंड सोसायटी के यहां रजिस्ट्रेशन भी करा लिया था। लेकिन, उनकी यह पहल आईएएस और आईपीएस अफसरों को अच्छी नहीं लगी। यूनियन के गठन को विद्रोह की तैयारी का नाम देकर उन्होंने न सिर्फ यूनियन के विस्तारीकरण की राह में कांटे बिछा दिये, बल्कि अगुवाई करनेवाले पुलिसकर्मियोंं को भी परेशान किया। किसी का दूरदराज तबादला कर दिया तो किसी को निलंबित कर दिया गया। एक-दो पुलिसकर्मियोंं पर तो रासुका तक लगा दी गई थी। उसके बाद यूनियन तो खड़ी नहीं हो सकी, उसके लिए एक कानूनी लड़ाई शुरू हो गई।

पुलिस में यूनियन को लेकर संघर्ष कर रही टीम के सदस्य ब्रिजेंद्र सिंह यादव ने बताया कि अधिकारों के इस आंदोलन के सूत्रधार पुलिसकर्मियोंं ने 1993 में हाईकोर्ट में याचिका संख्या (5350) लगा दी। इसमें सवाल उठाया गया कि जब हर प्रदेश में अधिकारियों-कर्मचारियों की एसोसिएशन है तो यूपी में इस पर बंदिश क्यों लगाई जा रही है।

शिकायती पुलिसकर्मियों ने कहा कि यूपी में आईपीएस अफसरों की एसोसिएशन चल रही है तो छोटे कर्मचारियों को इस अधिकार से क्यों दूर किया जा रहा है। हाईकोर्ट ने 27 अगस्त 1993 को एसोसिएशन के गठन को मंजूरी का फैसला भी सुना दिया। लेकिन, आईएएस-आईपीएस लॉबी ने अपना वर्चस्व खत्म होने की आशंका से उस आदेश का अनुपालन नहीं किया। इसके बाद कानूनी दांव-पेंचों के जरिए यूनियन की राह में अड़ंगे लगाने शुरू कर दिए।

पुलिस की यूनियन चला रहे बर्खास्त सिपाही ब्रिजेंद्र यादव ने बताया कि कोर्ट के आदेशों के पालन से बचने के लिए तत्कालीन डीजीपी ने हाईकोर्ट में लिखकर दिया कि 1973 में पुलिस एक विद्रोह झेल चुकी है। इसे देखते हुए वैसी स्थितियां पैदा करने वाली किसी गतिविधि को जानबूझकर इजाजत नहीं दी जा सकती है। यही नहीं, डीजीपी ने तत्कालीन सीएम और मुख्य सचिव को भी पत्र लिखकर पुलिस की किसी एसोसिएशन को अस्तित्व में न आने देने का अनुरोध किया था। तभी से यह मामला हाईकोर्ट में विचाराधीन था। इसमें कर्मियों के पक्ष में तीन-चार बार फैसले हुए और यूनियन के गठन की अवधि तक निर्धारित की गई। लेकिन, शासन ने हर बार कोई न कोई अड़ंगा लगाकर उसका क्रियान्वयन रोक दिया।

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