रायपुर@धरती के रंग। छत्तीसगढ़ नारायणपुर जिला मुख्यालय से महज 40 किलोमीटर दूर महानदी के तट पर स्थित है नारायणपुर गांव का ऐतिहासिक पूर्वमुखी शिव मंदिर। कभी इस मंदिर को बौद्ध विहार माना जाता था, लेकिन काफी जांच-पड़ताल और शोध के बाद पता चला कि ये शिव मंदिर है।
मंदिर बनाने वाले कारीगर को लेकर इलाके में विचित्र तरह की जनश्रुति प्रचलित है। कहते हैं कि 6वीं सदी में इसे बनाने वाला कारीगर नंगे बदन इसके पत्थरों की तराशी का काम करता था। दोनों समय उसकी पत्नी ही खाना लेकर आती थी। संयोग से एक दिन उसकी बहन खाना लेकर आई और अपने कारीगर भाई को नंगे देख शर्म से पानी-पानी हो गई। इसी तरह बहन की स्थिति देख उस कारीगर से शर्म के मारे रहा नहीं गया और उसने मंदिर से कूदकर जान दे दी। भाई के मरने पर बहन ने भी प्राण त्याग दिए। मंदिर के समीप दो पाषाण की शिला पड़ी है, जिसके बारे में कहा जाता है कि वो उस कारीगर और उसकी बहन की हैं।
नहीं होता है पूजा-पाठ
सिरपुर कालीन इस प्राचीन मंदिर में पूजा-पाठ भी नहीं होता। इसकी वजह है कि निर्धारित समयावधि में इसका निर्माण पूरा नहीं हो पाया था। दरअसल मंदिर बनाने वाले कारीगर की बीच में ही मृत्यु हो जाने के चलते मंदिर भी अधूरा रह गया।
पत्थरों का है पूरा मंदिर
मंदिर एक कोण में महानदी के किनारे स्थित है। इसमें सुंदर नक्काशी और भित्ती चित्र उकेरे गए हैं। पूरा मंदिर पत्थरों से निर्मित है। साथ ही विभिन्न प्रकार की मूर्तियां दीवारों पर बनी हुई हैं। पुरातत्व विभाग ने इसे चारो तरफ से लोहे के ग्रिल से घेर दिया है, ताकि ये सुरक्षित रहे।