राकेश दुबे@प्रतिदिन। अफगानिस्तान के हिंदूकुश क्षेत्र में आया 7.7 तीव्रता का भूकंप हमारे लिए पुनः ढेरों सवाल लेकर आया है। हिंदूकुश हिमालय का हिस्सा है| इस भूकंप को भारत के संदर्भ में देखने की जरूरत है। हमारे भूभाग से लगे हिमालय के इलाकों में इतना और इससे बड़े भूकंप की आशंका बनी हुई है। ऐसे शोध हैं, जो बता रहे हैं कि जोनिंग इलाकों में आठ या इससे ऊपर की तीव्रता वाले भूकंप आ सकते हैं। उल्लेखनीय है कि ये इलाके दिल्ली से महज 300 किलोमीटर ही दूर हैं।यदि कभी को अनहोनी हुई तो उससे जितनी ऊर्जा निकलेगी, वह अफगानिस्तान में आए भूकंप से 30-40 गुना ज्यादा तीव्रता की होगी।
देश को 5 जोन में बांटा गया है। जोन पांच सबसे खतरनाक जोन है, जहां तेज भूकंप की आशंका है। जोन पांच में कश्मीर, पश्चिम और मध्य हिमालय, उत्तर बिहार, पूर्वोत्तर राज्य और कच्छ आता है। हालांकि एनसीआर (राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र, जिसमें राजधानी दिल्ली के आसपास के तमाम क्षेत्र शामिल हैं) जोन चार का क्षेत्र है, मगर यहां भी दो तरह के खतरे हैं। अगर हिमालय में आठ के आसपास का भूकंप आया, तो भी उसके तेज झटके यहां महसूस होंगे। और अगर इसका केंद्र दिल्ली रहा, जहां छह और 6.5 के आसपास के भूकंप आने की आशंका है, तो भी इससे पूरा एनसीआर प्रभावित होगा।
दिल्ली में पहले भी भूकंप आए हैं। घनी आबादी नहीं होने के कारण तब दिल्ली, फरीदाबाद, मथुरा में आए भूकंप से ज्यादा नुकसान नहीं हुए थे। मगर आज तस्वीर पूरी तरह बदली हुई है। दिल्ली का जनसंख्या घनत्व काफी बढ़ गया है। यहां शहरी हिस्से का फैलाव हो रहा है। झुग्गी-झोपड़ियां और अनाधिकृत कॉलोनियों का निर्माण हुआ है। लिहाजा यह सोचना जरूरी है कि इस परिदृश्य में आखिर हम करें क्या? ऐसा नहीं है कि हमारे पास तकनीक नहीं है। हम जानते हैं कि भूकंपरोधी घर कैसे बनाए जाएंगे। मगर हम इस दिशा में उदासीन हैं। इतना ही नहीं, सरकार की तरफ से बेहतर निरीक्षण तंत्र न होने के कारण भी शहर का बेतरतीब विकास हो रहा है। ऐसे में अगर हिमालय के आसपास अथवा दिल्ली में ही, भूकंप आता है, तो काफी तबाही हो सकती है।
अब जबकि छह महीने के अंदर ही हमने दो भूकंप (पहला नेपाल और अब अफगानिस्तान-पाकिस्तान) देखा है, तो यह उचित वक्त है कि हम अपनी तैयारी की समीक्षा करें। असल में, हमारे यहां जब कोई बड़ी घटना होती है, तो खूब हायतौबा मचता है। पर समय बीतने के साथ ही हम उसे भूल जाते हैं। छह महीने पहले ही नेपाल में आए विध्वंसकारी भूकंप के बाद कई दिनों तक काफी जोर-शोर से चर्चा हुई थी, मगर वे दावे आज भी किए जा रहे हैं। यानी छह महीने में कुछ भी बदला प्रतीत नहीं हो रहा है।
श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
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