घोटालेबाज अफसर की मदद कर रही है EOW

भोपाल। बहुत सारे घोटालेबाज अफसर और शातिर ठग भी नहीं जानते कि ईओडब्ल्यू चीज क्या है। आर्थिक अपराधों का अन्वेषण करने वाला यह ब्यूरो एक प्रकार से सीबीआई की तरह काम करता है और ईमानदारी वाली दिमागदार जांच के लिए विख्यात माना जाता है परंतु यदि ईओडब्ल्यू ही रिश्वत लेने लगे, घोटालेबाज अफसरों की जांच दबाने लगे तो फिर शिकायत कहां करें ? मामला कुछ ऐसा ही है। शिकायतकर्ता ने हाईकोर्ट की शरण ली है। 

जलसंसाधन विभाग में कार्यपालन यंत्री के पद पर दो बार रहते हुए करोड़ो का घोटाला करने वाले तत्कालीन ईई अनिल अग्रवाल के खिलाफ एडवोकेट विजय तिवारी की शिकायत पर 6 अगस्त 2012 को ईओडब्ल्यू भोपाल में एफआईआर दर्ज कर ली गई थी लेकिन ईओडब्ल्यू ने जांच के नाम इस मामले को तीन साल से लटकाए रखा है। मामला शिवपुरी के मणीखेड़ा डेम का है। ईई ने फोटोग्राफी के नाम पर 25 लाख का भुगतान किया, अपने बेटे और दामाद को फर्जी पेमेंट किए। नौकरों तक के नाम पर लाखों का लेनदेन हुआ है। 

शिकायत कर्ता ने हाईकोर्ट में ईओडब्ल्यू के खिलाफ कंटेप्ट पिटीशन दायर कर दी। जिस पर हाईकोर्ट की डबल बैंच ने ने चार माह में जांच पूरा करने के आदेश ईओडब्ल्यू के डीजीपी को दिए है। 

हाईकोर्ट ने सरकारी वकील के माध्यम से जल संसाधन विभाग के प्रमुख सचिव से लेकर चीफ इंजीनियर व अधीक्षण यंत्री को इस आशय के सूचना पत्र भेजने के निर्देश दिए कि वे इस मामले में ईओडब्ल्यू को सहयोग करे। 

इस मामले में शिकायत कर्ता एड.विजय तिवारी का कहना है कि अभी भले की इस मामले में ईओडब्ल्यू ने एफआईआर अकेले ईई अनिल अग्रवाल पर हुई है लेकिन जांच के बाद उनक रिश्तेदार व नौकर तक आरोपी बनेंगें क्योकि उनके नाम पर ही शासकीय मद से लाखो को फर्जी भुगतान किया गया है। 

चलिए हाईकोर्ट ने आदेश दिया है तो घोटालेबाजी के आरोपी ईई के खिलाफ जांच भी हो जाएगी और जब शिकायतकर्ता के पास सबूत उपलब्ध हैं तो ईओडब्ल्यू लीपापोती भी नहीं कर पाएगी, 

  • परंतु सवाल यह है कि 
  • क्या हर शिकातकर्ता इसी तरह हाईकोर्ट जा सकता है।  
  • क्या हर शिकायतकर्ता को हाईकोर्ट ही जाना पड़ेगा। 
  • क्या ईओडब्ल्यू में यह सबकुछ आम बात हो गई है। 
  • तीन साल में अफसर भी बदले होंगे, फिर फाइल बंद क्यों पड़ी रही। 
  • जांच की जद में तो ईओडब्ल्यू भी है। 
  • क्यों ना मान लिया जाए कि इस जांच को दबाने के लिए ईओडब्ल्यू ने रिश्वत ली। 
  • अब प्रश्न बस इतना कि ईओडब्ल्यू की रिश्वतखोरी को पकड़ेगा कौन ? 

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