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जानकारी के मुताबिक राज्य सहकारी कृषि और ग्रामीण विकास बैंक को हर माह साढ़े चार करोड़ रुपए वेतन और भत्ते में लगते हैं। सरकार बैंक को बंद करने का फैसला कर चुकी है।
इसके लिए लागू योजना के तहत बैंक जितनी भी वसूली करेंगे, वह वित्त विभाग में जमा कराई जाएगी। विभाग वेतन और भत्तों के लिए जरूरी राशि बैंक को मुहैया कराएगा पर दो माह से वित्त विभाग ने एक धेला भी बैंक को नहीं दिया है। वहीं, जुलाई से अक्टूबर तक सूखे के कारण वसूली भी नहीं के बराबर हुई। इस वजह से वेतन ही नहीं बंटा है।
इसका असर वसूली पर भी पड़ रहा है। बैंककर्मी न तो वसूली केस बना रहे हैं और न ही किसानों को कर्ज चुकाने के लिए तैयार कर रहे हैं। बैंक के प्रबंध संचालक पीएस नर्गेश का कहना है कि वसूली नहीं होने से परेशानी आ रही है। राजगढ़ बैंक में समस्या ज्यादा है। यहां जुलाई से वेतन नहीं बंटा है। इसी तरह की स्थितियां अन्य जिला व राज्य बैंक की भी है।
लौटाने हैं निवेशकों के 40-50 करोड़
बैंक को निवेशकों के भी लगभग 50 करोड़ रुपए चुकाने हैं। ये राशि लोगों ने बतौर सावधि जमा की थी। बैंक ने ये रकम किसानों को ऋण के तौर पर दी, लेकिन वापस नहीं मिली। इसके कारण बैंक निवेशकों को अब तक राशि नहीं लौटा सकता है। बैंक अधिकारियों का कहना है कि वसूली से जो रकम आती है वो वेतन-भत्तों में ही खर्च हो जाती है। ऐसे में दूसरी देनदारी अदा करना फिलहाल संभव नहीं है।