राकेश दुबे@प्रतिदिन। दिल्ली के एक मित्र ने अरुणाचल के बारे में जानना चाहा है | पूर्वोत्तर राज्यों की अपनी समस्याएं हैं , जहाँ तक इस समय अरुणाचल का मामला है | वहां संवैधानिक संकट नहीं है ,लेकिन ऐसा राजनीतिक संकट जरूर है जिसकी नजीर देश के दूसरे राज्यों में दिखाई नहीं देती| ईटानगर का घटनाक्रम इतना अजीब है कि अदालत को हस्तक्षेप करना पड़ा है| इस मामले को जहां संसद में उठाया गया है ,वहीं राष्ट्रपति से भी इसकी शिकायत की गई है| कांग्रेस इस मसले को अरुणाचल में ‘लोकतंत्र की हत्या’ बताते हुए विरोध जता रही है और राजयपाल ज्योति प्रसाद राजखोवा को नरेंद्र मोदी सरकार का एजेंट बताते हुए आरोप लगा रही है कि वे कांग्रेस की सरकार को गिराने की साजिश को अंजाम दे रहे हैं|
बीते कुछ दिनों में राज्य के कांग्रेस विधायकों के दो गुटों ने एक दूसरे के खिलाफ अविास प्रस्ताव पारित किया है, एक दूसरे को अयोग्य करार दिया है| विधानसभा अध्यक्ष जहां एक गुट के साथ हैं वहीं विधानसभा उपाध्यक्ष दूसरे गुट के साथ हैं| दो मुख्यमंत्री भी सामने आ गए हैं जो अपने-अपने समर्थकों के साथ एक-दूसरे के खिलाफ आग उगलते हुए झगड़े को सड़क पर ले आए हैं| देश की लोकतांत्रिक और संघीय राजनीति के साथ भारत के इस सीमांत राज्य में जिस तरह खिलवाड़ हो रहा है, उसके चिंताजनक निहितार्थ निकल रहे हैं| अरुणाचल में कुछ महीने पहले ही कांग्रेस के अंदर असंतुष्टों की बढ़ती गतिविधियों के चलते राजनीतिक संकट का सूत्रपात हो गया था| विधायकों का एक गुट जहां मुख्यमंत्री नबाम टुकी का समर्थन कर रहा था,वहीं बागी खेमे का नेतृत्व कालिखो पूल कर रहे थे| जैसे-जैसे बागी खेमे के विधायकों की तादाद बढ़ती गई, नबाम टुकी की सरकार के वजूद का खतरा भी वैसे-वैसे बढ़ता गया|
पिछले महीने टुकी समर्थक विधायकों ने विधानसभा उपाध्यक्ष पर पार्टी विरोधी गतिविधियों में संलिप्त होने का आरोप लगाते हुए उन्हें पद से हटाने की मांग की थी| इसके तुरंत बाद विपक्षी भाजपा विधायकों ने विधानसभा अध्यक्ष को हटाने की मांग शुरू कर दी| मामला तब और बिगड़ गया जब राज्यपाल ने विधानसभा का शीतकालीन अधिवेशन निर्धारित तिथि १४ जनवरी से एक महीना पहले ही १६ दिसम्बर से शुरू करने का निर्देश जारी कर दिया| सत्र जल्दी बुलाने के अपने फैसले को उचित ठहराते हुए राज्यपाल ने संविधान के अनुच्छेद १७५ [२] का हवाला दिया, जिसमें बताया गया है -किसी लंबित विधेयक को पारित करने या किसी अनिवार्य मसले पर विचार करने के लिए सत्र को समय से पहले बुलाया जा सकता है| लेकिन यहाँ तो पूरी विधान सभा दो गुटों में बंट गई है |केंद्र का हस्तक्षेप जरूरी है |