मुंबई। महाराष्ट्र सरकार ने बॉम्बे हाईकोर्ट में बीफ पर बैन लगाए जाने के अपने फैसले को सही ठहराया है। इसके साथ ही सरकार ने कहा है कि प्रिवेसी जैसा कोई मूलभूत अधिकार नहीं है। सरकार की ओर से अदालत में पेश अधिवक्ता एसजी एनी ने हाईकोर्ट को बताया कि राज्य के पास कुछ निश्चित खान-पान की चीजों को बैन करने का अधिकार है।
अधिवक्ता ने अदालत के इस सवाल के जवाब में यह बात कही थी कि क्या सरकार ऐसी कोई सूची जारी कर सकती है कि राज्य में इन चीजों को खाने पर बैन लग गया है? एनी ने कहा कि ऐसी किसी भी सूची के बारे में बात करना आधारहीन है, लेकिन सरकार कुछ नियम तय कर सकती है। उन्होंने कहा कि जैसे राज्य में पानी की कमी है, ऐसे में सरकार कारों को धोने पर बैन लगा सकती है।
सरकार ने कहा कि शराब पर बैन की तरह ही बीफ पर भी बैन लगाया जा सकता है। एडवोकेट जनरल ने अदालत को बताया, 'कानून सिर्फ गायों, बैलों और गोवंश के वध पर ही रोक नहीं लगाता, बल्कि पूरे महाराष्ट्र में इसे खाने पर भी प्रतिबंध है।' सरकार ने जोर देकर हाईकोर्ट में कहा कि प्रिवेसी जैसा कोई अधिकार नहीं है।
कुछ लोगों ने याचिका दायर कहा था कि सरकार की ओर से लगाया गया यह बैन जीने के मूलभूत अधिकार का हनन करता है, इसके अलाना राइट टू प्रिवेसी भी इससे प्रभावित होता है। एनी ने कोर्ट में इस याचिका के जवाब में कहा, 'खाने का अधिकार भरण-पोषण के लिए है। लेकिन इसका विस्तान मनमाने खाने के लिए नहीं किया जा सकता।' एडवोकेट जनरल ने कहा कि बीफ खाना राज्य में गैरकानूनी गतिविधि है। कोई भी इसके लिए मूलभूत अधिकारों के हनन का दावा नहीं कर सकता है