जब आदमी दवा खाने से मर जायेगा

राकेश दुबे@प्रतिदिन। बहुत साल बाद मेरे वे कालेज के सहपाठी शहर में जुटे, जिनकी ख्याति नामी चिकित्सक के रूप में हैं. दंत चिकित्सकों के 35वें सम्मेलन के उद्घाटन का भी मौका मिला | दोनों ही अवसरों दवाई उनका उपयोग और विशेषकर एंटीबायोटिक दवाओ का कभी डाक्टर की मर्जी से कभी खुद की मर्जी से खाने पर बातें हुई | निष्कर्ष यह निकला कि “वो दिन दूर नहीं है जब आदमी बीमारी से नहीं दवा खाने से मरेगा|”  

आमतौर पर यह देखने में आता है कि बीमारी कोई भी हो, न तो डाक्टर एंटीबायोटिक दवाएं देने में कोताही करते हैं और न मरीज उनका सेवन करने में| यह चिंताजनक है कि हमारे यहां इन दवाओं के दुष्प्रभावों को जाने-समझे बिना ही इनका अंधाधुंध सेवन किया जा रहा है. हाल ही में विश्व स्वास्थ्य संगठन ने भी इसे लेकर भारत समेत दक्षिण पूर्वी एशिया के सभी देशों को आगाह किया है| 

डब्ल्यूएचओ द्वारा चेताया गया है कि अगर एंटीबायोटिक दवाओं के इस्तेमाल को सीमित नहीं किया गया तो आने वाले समय में माइक्रोबियल प्रतिरोध के कारण होने वाली मौतों में भारी इजाफा हो सकता है| गौरतलब है कि एंटीबायोटिक दवाएं या तो बैक्टीरिया को खत्म कर देती हैं या उनकी वृद्धि को रोक देती हैं, लेकिन इनका लगातार इस्तेमाल करते रहने से बैक्टीरिया में उत्परिवर्तन के कारण प्रतिरोध क्षमता पैदा हो जाती है| इसके चलते ऐसी दवाएं असर करना बंद कर देती हैं. इसी को माइक्रोबियल प्रतिरोध कहा जाता है|इसके लिए एंटीबायोटिक औषधियों के अंधाधुंध को इस्तेमाल को वजह माना जाता है| 

देखने  में आता है कि कई बार छोटी-छोटी बीमारियों के लिए भी एंटीबायोटिक दवाएं ले ली जाती हैं. इसके चलते  बैक्टीरिया उस दवा के प्रति प्रतिरोध पैदा कर लेते हैं| विशेषज्ञों का मानना है कि इन दवाइयों के सेवन को लेकर बरती जा रही ऐसी लापरवाही के चलते आने वाले वर्षो में ठीक हो सकने वाली कुछ बीमारियां भी लाइलाज हो जाएंगी| यदि उचित कदम नहीं उठाए गए तो २०५०  तक दुनिया में एंटी माइक्रोबियल प्रतिरोध से मरने वालों की संख्या एक करोड़ तक पहुंच जाएगी| इसका एक बड़ा हिस्सा भारत समेत दक्षिण पूर्व एशियाई देशों में होगा| इससे जीडीपी को २से ३.५ प्रतिशत तक का नुकसान हो सकता है| 

यकीनन जिस स्तर और दर से एंटीबायोटिक दवाएं अपना असर खो रही हैं यह भारत के लिए भी चिंता का विषय है|इन दवाओं के इस्तेमाल से जुड़ा दूसरा चिंतनीय पहलू यह है कि कई व्याधियों के लिए बनाई गई एंटीबायोटिक दवाएं ऐसी हैं जिनका अभी तक हमारे पास  कोई अन्य विकल्प नहीं है|ऐसे में इन औषधियों का बेअसर होना वाकई चिंता की बात है. कुछ समय पहले  इंग्लैंड की ‘हेल्थ प्रोटेक्शन एजेंसी’ नामक संस्था ने भी चेतावनी देते हुए कहा था कि छोटे-मोटे संक्रमण के लिए भी एंटीबायोटिक का बेवजह इस्तेमाल हो रहा है जिससे बैक्टीरिया इनके प्रति तीव्रता से प्रतिरोधक क्षमता विकसित कर रहे हैं|

स्वास्थ्य से जुडी इस चिंता के ऐसे हालात आज दुनियाभर के देशों में सामने आ रहे हैं|बावजूद इसके इन दवाओं के दुरुपयोग से विकसित देश भी नहीं बच पाये हैं. डब्ल्यूएचओ के अनुसार हर भारतीय साल में करीब ११ बार एंटीबायोटिक दवाएं खाता है| यह आंकड़ा वाकई गौर करने वाला है क्योंकि यहां बात केवल एंटीबायोटिक दवाएं लेने भर की नहीं है| दवाओं के सेवन को लेकर बरती गई यह असावधानी कई और स्वास्थ्य समस्याओं को भी जन्म देती है| दुनियाभर में होने वाली एंटीबायोटिक दवाओं  की खपत का 4. 76 फीसद हिस्सा केवल भारत, ब्राजील, रूस, चीन और दक्षिण अफ्रीका जैसे देशों में ही खप जाता है| इसमें कोई संदेह ही नहीं कि समय के साथ एंटीबायोटिक औषधियों का प्रचलन और बढ़ा ही है| भारत में ले-दे कर  खुलते मेडिकल कालेज, उनसे निकलती महान विभूतियाँ, दवा की नामी- गिरामी कम्पनियां और उनके दावपेंच, दवा में मौजूद साल्ट की गुणवत्ता और कई ऐसे कारक है, जो आदमी को दवा से ही मार देंगे | 


  • श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
  • संपर्क  9425022703
  • rakeshdubeyrsa@gmail.com 
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