कभी ब्लैक में बिकते थे इनके भाषण, अब कोई बुलाता नहीं

ग्वालियर। ग्वालियर के जो नेता एक दशक पहले तक देश-प्रदेश की राजनीति में दूसरे लोगों के लिए निर्णय लिया करते थे। वे अब खुद के राजनीतिक कॅरियर के लिए दूसरे नेताओं का मुंह ताकते हैं। ऐसे दबंग नेताओं में कोई विराेधियों के चक्रव्यूह में फंसकर तो कोई खुद के लिए गलत निर्णय लेकर अर्श से फर्श पर आ गया है। उम्र के जिस पड़ाव पर राजनीतिक कॅरियर स्थायी होता है उस उम्र में वे खुद के लिए राजनीतिक जमीन की तलाश कर रहे हैं। भाजपा विधायक जयभान सिंह पवैया ऐसे नेता हैं जिनके भाषण की कैसेट्स ब्लैक में बिका करती थीं, तब से लेकर आज तक उनका राजनीतिक कॅरियर का ग्राफ ऊपर जाने की बजाय नीचे की ओर खिसका है। 

जयभान सिंह पवैया, विधायक (भाजपा)
राजनीति में प्रवेश- 1973 में जयप्रकाश नारायण के संपूर्ण क्रांति आंदोलन से जुड़कर राजनीति शुरू की। 
1982 तक एबीवीपी के जरिए आरएसएस से जुड़े और हिन्दूवादी राजनीति में प्रवेश, फिर बजरंग दल के राष्ट्रीय अध्यक्ष बने।

चढ़ाव- 1993 में बाबरी ढांचे को ढहाने वाले मुख्य आरोपियों में शामिल रहे। जिससे देश में राजनीतिक कद बढ़ने लगा। फिर 1998 के लोस चुनाव में ग्वालियर से माधवराव सिंधिया के खिलाफ चुनाव लड़कर उन्हें अगले चुनाव में सीट बदलने पर मजबूर करने के कारण प्रसिद्धि मिली। इस चुनाव में हार के बाद 1999 में हुए लोस चुनाव में कांग्रेस प्रत्याशी चंद्रमोहन नागौरी को रिकार्ड मतों से हराकर भाजपा के खाते में ग्वालियर की सीट देकर अपना कद बढ़ाया।

पतन- 2004 का लोस चुनाव हार गए। फिर 2008 में ग्वालियर विस क्षेत्र से चुनाव लड़े और दो हजार वोटों से हार गए। 

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