
सूचना मिलने पर समाजसेवी इनायत मेंहदी लगे हाथों से ही निकाह की रस्में छोड़कर जिला अस्पताल जा पहुंचे और वहां से मृत बच्ची के परिवार वालों के साथ रानीताल स्थित श्मशान घाट पर जाकर उसका अंतिम संस्कार किया.
इनायत मानते हैं कि सबसे पहले मनावता का काम करना जरूरी है. इसके बाद विवाह या किसी दस्तूर पर ध्यान देना चाहिए. उनको मानवीय कार्य करने से अपार खुशी मिलती है.
इनायत अली बीते 11 साल से गरीब नवाज कमेटी के नाम से एक संस्था अपने कुछ साथियों के साथ मिलकर चला रहे हैं. इस दौरान उन्होंने अभी तक तीन हजार से ज्यादा लावारिश लाशों को अपने दम पर दफनाया है.
इनायत की बहन सायरा ने बताया कि, निकाह का दस्तूर चल रहा हो तो शायद ही कोई परिवार दूल्हे को लाश के पास जाने की अनुमति दे. इसके बावजूद इनायत को उनके परिजनों ने लाश का अंतिम संस्कार करने की इजाजत दे दी. लिहाजा, इनायत को ऐसे मौके पर अपने परिवार का भी भरपूर साथ मिला.