सुधीर ताम्रकार/बालाघाट। बालाघाट पुलिस द्वारा जिले से फर्जी टीपी के माध्यम से किये गये वनोपज फर्जीवाडे में जिस तरह से पुलिस कार्यवाही कर रही है उससे वन अधिकारियों और कर्मचारियों में हडकम्प के साथ भय का माहौल भी व्याप्त हो गया है। अधिकारी कर्मचारी इस अनजाने डर से डरे है कि कहीं पुलिस की कार्यवाही में उनका नाम तो नहीं है।
जिससे वन अधिकारी और कर्मचारी ने एकजुटता के साथ पुलिस पर तानाशाही कार्यवाही करने का आरोप लगाते हुए जिला प्रशासन और मुख्य वन संरक्षक से पूरे मामले में हस्तक्षेप कर वनमाफिया के षडयंत्र का शिकार हो चुके छोटे वन कर्मचारियों पर कार्यवाही का विरोध करते हुए वरिष्ठ अधिकारियों की भूमिका की भी निष्पक्ष जांच की मांग की है।
मध्यप्रदेश वन कर्मचारी संघ जिलाध्यक्ष रविन्द्र कुमार श्रीवास्तव और अखिल भारतीय वन अधिकारी महासंघ राष्ट्रीय उपाध्यक्ष नरेन्द्र मिश्रा ने फर्जी टीपी के सहारे किये गये वनोपज फर्जीवाडे में पकडाये जा रहे वन अधिकारी और कर्मचारियों के समर्थन में खडे़ होते हुए इनकी गिरफ्तारी पर पुलिसिया कार्यवाही पर तानाशाही रवैया अपनाये जाने का आरोप लगाते हुए पुलिस कार्यवाही पर सवाल खडे किये है और आगामी 26 दिसंबर से हड़ताल पर चले जाने का ऐलान किया है।
अखिल भारतीय वन अधिकारी महासंघ के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष नरेन्द्र मिश्रा ने कहा कि दक्षिण वनमंडल साण् अंतर्गत फर्जी ट्रांजेट पास प्रकरण में जांच एवं वनकर्मचारियेां की एकतरफा नियमविरूद्व गिरफ्तारी की जा रही है। रोजाना ही फर्जी टीपी प्रकरण के समाचारों के अखबारों में प्रकाशन से बालाघाट जिले के अधिकांश कर्मचारियों में भय व्याप्त है। जिससे शासकीय कार्य प्रभावित हो रहे है। उन्होंने कहा कि फर्जी टीपी प्रकरण में ठोस बिंदुओं की जांच के बाद ही वन अधिकारी एवं कर्मचारी की गिरफ्तारी की जायें लेकिन ऐसा नहीं करके बालाघाट पुलिस द्वारा वनमाफिया द्वारा कूटरचित अपराध में वनविभाग के कर्मचारियों को शामिल कर उनकी गिरफ्तारी की जा रही है। जबकि वे गिरफ्तार वनोपज नाका इत्यादि के वन कर्मचारी वनमाफिया की कूटरचना एवं फर्जी अभिलेखों के स्वयं शिकार हो गये है उनकी महज इतनी गलती है कि वे कूटरचित दस्तावेज फर्जी परिवहन पास को अनजाने में समझ नहीं सके है। जिसका कुछ आधार भी है जिसे बालाघाट पुलिस ने गिरफ्तारी से पूर्व अपनी जांच में इसे एकतरफा नजरअंदाज किया गया है।
श्री मिश्रा की मानें तो कर्मचारियों को वनविभाग को बिना सूचना दिये गिरफ्तार करने शासन की अवधारणा एवं दण्ड प्रक्रिया संहिता 1973 की धारा 197 के खिलाफ कार्यवाही की गई है। जिससे और भी वनकर्मचारियों ने वनसुरक्षा करने से अपने हाथ खडे कर दिये है और कर्मचारी सामूहिक अवकाश में जाने का मन बना चुके है।
मध्यप्रदेश कर्मचारी संघ जिलाध्यक्ष रविन्द्र कुमार श्रीवास्त ने फर्जी टीपी मामले में गिरफ्तार किये जा रहे वनकर्मचारियों के पक्ष का पक्ष लेते हुए कहा कि जिस सांई टिंबर की बात सामने आ रही है। अखबार की जानकारी अनुसार उसका रजिस्ट्रेशन वर्ष 2011 तक था उसके बाद उसका रजिस्ट्रेशन का नवीनीकरण नहीं किया गया तब तत्कालीक से लेकर वर्तमान तक के समस्त डीएफओ दक्षिण सामान्य एवं उत्पादन द्वारा वर्क ऑर्डर क्यों और कैसे जारी किया गया गयाघ् सम्पत्ति चिह्रन प्रदान करने एंव टीपी जारी के लिए संबंधित को क्यों और कैसे आदेशित किया गया क्या इसके लिए वनमंडल अधिकारी दोषी नही है उन्होंने कहा कि बालाघाट पुलिस का तर्क है कि बिना हेमर लकडी परिवहन हुई है किंतु अधिकांश वन कर्मचारी या पुलिस कर्मचारी ट्रे में दो या दो से अधिक लाईनोंमें लोड किये गये लट्ठों की जांच किया जान संभव नहीं होता क्योंकि कोई भी ट्रक वनोपज नाके में अनलोड करने जांच नहीं किया जाता है जिसका लाभ बालाघाट वनमाफिया ने उठाया है।
दूसरी ओर दक्षिण बालाघाट उत्पादन के तत्कालीन से लेकर वर्तमान तक के वनमंडल अधिकारी द्वारा सांई टिंबर का पंजीयन नहीं होने के बावजूद भी उन्हें नीलामी में शामिल कर उन्हें माल बेचा गयाए जो नियम विरूद्ध हैए जिसके लिए उक्त वनमंडल अधिकारी जिम्मेदार है जिसके लिए छोटे कर्मचारी जिम्मेदार नहीं है। जिनके खिलाफ कार्यवाही नहीं कर पुलिस विभाग वनकर्मियों को गिरफ्तार कर रही है जो संदेहास्पद और चिंतनीय है। जबकि फर्जी टीपी में जिस लकडियों का परिवहन किया गया है वह वनक्षेत्र से नहीं बल्कि राजस्व एवं भूमिस्वामी से काटा गया है। जिसके लिए राजस्व के उच्चाधिकारी जिम्मेदार है न की वन कर्मचारी। जिससे पुलिस द्वारा वनोपज का फर्जीवाडा कहा जाना वनविभाग को बदनाम करना है। यही नहीं बल्कि इस मामले में वन एवं राजस्व विभाग के उच्चाधिकारियों को बचाकर पुलिस छोटे वन कर्मचारियों पर कार्यवाही कर रही है जो न्यायोचित नहीं है। जिससे जिले के समस्त मैदानी कर्मचारी परेशान और हताश है और वे इस कार्यवाही के विरोध में आगामी समय से सामूहिक रूप से हडताल पर जा रहे है।
एसडीओ और डीएफओ पर कार्यवाही क्यों नहीं
सांई टिंबर का बिना वेरीफिकेशन के बाद भी उसे नीलामी में शामिल कर उसे माल बेचे जाने पर महत्वपूर्ण और अहम भूमिका अदा करने वाले वन विभाग के एसडीओ और डीएफओ पर कार्यवाही नहीं कर छोटे कर्मचारियों के खिलाफ की जा रही पुलिस कार्यवाही से संघ पदाधिकारी और कर्मचारियों में असंतोष और पुलिस कार्यवाही के प्रति संदेह पैदा होने लगा है। उनका कहना है कि इस मामले में पुलिस उन उच्चाधिकारियों की भूमिका पर कार्यवाही करते हुए उन्हें भी गिरफ्तार करें। वनकर्मचारी संघ का मानना है कि वरिष्ठ अधिकारियों पर कार्यवाही नहीं करके पुलिस केवल और केवल छोटे कर्मचारियों पर पुलिस का डंडा चला रही है जो पुलिस की निष्पक्ष कार्यवाही पर संदेह पैदा करता है।