
प्राचीनकाल मे चन्देलो के तंत्र मंत्र साधना स्थल के रुप मे जंत घाटी पहचानी जाती थी। जो अब जतारा के नाम से प्रचलित है। सन 1190 मे कन्नौज के राजा जयचन्द्र ने दिल्ली के महाराजा पृथ्वीराज चौहान से अपना शासन सत्ता लेने का अनेक बार प्रयास किया हर बार विफल रहा। तब उसके मित्र मीरचन्द्र ने जयचन्द्र को सलाह दी कि शक्ति की देवी माँ तारा देवी की उपासना करे।
मित्र की सलाह मानकर राजा जयचन्द ने 1190 मे तत्कालीन विध्यांचल और अब जतारा नगर के गोरैया पहाड़ पर स्थित माॅं तारा देवी के मन्दिर को अपनी तपस्थली बनाया। ऐसी मान्यता है कि राजा जयचन्द्र ने नवरात्रि मे कठिन तपस्या की जिससे तारा देवी ने प्रसन्न होकर राजा को विजयी का आर्शीवाद दिया।
ऐसी मान्यता है कि प्राचीन काल मे तारा देवी के नेत्रो से तेल और दूध की धार बहती थी। अब तेल और दूध की धार स्पष्ट तो दिखाई नही देती है। लेकिन गौर से देखने पर बहती हुई प्रतीत होती है। कई बार लोगों ने माता तारा देवी के नेत्रो पर रुई रखकर देखी गई। तो रुई भीग जाती है। लोग तारा देवी का चमत्कार मानते है। नवरात्रि मे साधक तंत्र मंत्र साधना के लिये गोरैया पहाड़ी पर तारा देवी के पास पहुॅचते है। अपनी मुराद पूरी करते है।
पहाडी पर देवी तारा का विशेष मन्दिर नही है। केवल पेड़ो के झुण्ड मे एक छोटा सा मन्दिर स्थित है। जो लोगो की आस्था का केन्द्र है। जिसका पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह के शासन काल मे 1998 मे जीर्णोद्धार किया गया था।