पढ़िए क्रूर संगठन आईएसआईएस की कहानी

Bhopal Samachar
नई दिल्ली। पूरी दुनिया में आतंक और दहशत का पर्याय बन चुके चरमपंथी समूह आईएसआईएस की क्रूरता और जुल्म उसकी ओर से अक्सर जारी किए जाने वाले वीडियो के जरिए सामने आते रहते हैं। इनमें लोगों का सिर कलम कर देना, गर्दन रेत देना या जिंदा जला देना इनके लिए आम हैं। रिपोर्टों के अनुसार अत्याधुनिक हथियारों और तकनीकों से लैस इस आतंकी समूह में 2011 से अब तक 90 देशों से 20 हजार से ज्यादा लोग भर्ती हुए हैं। अपने प्रचार के लिए ये आतंकी गुट सोशल मीडिया का भी भरपूर इस्तेमाल करता है। आज जब ये संगठन पूरी दुनिया के लिए खतरा बन चुका है तब ये जानना जरूरी है कि आखिर कैसे ये अस्तित्व में आया और कहां से जुटाई इसने इतनी बड़ी ताकत।

सद्दाम हुसैन की मौत के बाद जैसे ही अमेरिकी सेना इराक छोड़ कर बाहर आई वैसे ही वहां छोटे-मोटे कई गुट अपना वर्चस्व स्थापित करने के लिए लड़ने लगे और उन्हीं में से एक गुट का नेता था अल-कायदा का इराक में चीफ अबू बकर अल बगदादी। 2011 में अमेरिकी सेना की वापसी के साथ ही बगदादी ने अल-कायदा इराक का नाम बदलकर  इस्लामिक स्टेट ऑफ इराक (आईएसआईएस) रख लिया।

बगदादी ने सद्दाम हुसैन की सेना के कमांडर और सिपाहियों को अपने साथ मिलाया। धीरे-धीरे उसके साथ हजारों लोग शामिल हो चुके थे, जिनमें से बड़ी संख्या में सद्दाम हुसैन की सेना के अधिकारी भी थे। इन्होंने सबसे पहले पुलिस और सेना को निशाने पर लिया। फिर भी बगदादी को इराक में उम्मीद के मुताबिक कामयाबी नहीं मिल रही थी जिससे मायूस होकर बगदादी सीरिया पहुंच गया जहां अल-कायदा और फ्री सीरियन आर्मी सीरिया के राष्ट्रपति बशर अल असद से मोर्चा ले रहे थे।

सीरियाई आर्मी के जरिए सीरिया में सफलता नहीं मिलने के बाद बगदादी ने जून 2013 में एक महीने के अंदर हारने की बात कहकर दुनिया भर के देशों से हथियार देने की अपील की और इस अपील के असर का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि हफ्ते भर के अंदर ही अमेरिका, इजराइल, तुर्की, सऊदी अरब और कतर ने हथियार, पैसे और ट्रेनिंग का इंतजाम करवा दिया। फ्रीडम फाइटर के नकाब में आईएस के आतंकियों ने अमेरिका तक से ट्रेनिंग ले ली। यहीं से शुरू हुआ आईएसआईएस का आतंक।

जुलाई 2014 में ईरान के एक अखबार तेहरान टाइम्स को दिया गया एडवर्ड स्नोडेन का इंटरव्यू इस बात का संकेत करता है कि आईएस को बढ़ावा देने में अमेरिका का भी हाथ रहा है। कहा जाता है कि जैसे 1980 में ईरान के खिलाफ इस्तेमाल के लिए रासायनिक हथियार देकर अमेरिका ने सद्दाम हुसैन को ताकतवर बनाया, उसी प्रकार सीरिया के फ्रीडम फाइटर को अमेरिका ने हथियार और ट्रेनिंग देकर आईएसआईएस को बनाया। स्नोडेन ने तो यहां तक कहा कि इजराइल ने खुद बगदादी को हथियार चलाने की ट्रेनिंग दी ताकि विरोधी देश इसी में उलझे रहें।

स्नोडेन ने यह कहकर तहलका मचा दिया कि अमेरिका ने बगदादी से तेल के लिहाज से अमीर मिडिल ईस्ट में अपने दुश्मनों पर हमला कराया और मध्य एशियाई मुल्कों में आतंक फैलाकर अपनी सेनाओं को इन देशों में भेजा।

आईएसआईएस सीरिया और इराक के एक बड़े हिस्से पर अपना कब्जा जमा चुका है और इन इलाकों में अपनी सरकार भी चला रहा है। इस्लामिक स्टडीज में पीएचडी बगदादी चार साल इराक के बुक्का में अमेरिकी युद्धबंदी रह चुका है। 'द गार्जियन' ने बगदादी के साथी कैदी के हवाले से बताया था कि बगदादी बेहद शांत किस्म का शख्स था और वह दूसरे कैदियों को इस्लाम के बारे में बताता था।

रिपोर्ट में कहा गया है कि कुछ दिनों बाद बगदादी ने सुन्नी कैदियों और अमेरिकियों के पक्ष में बोलना शुरू किया और फूट डालो-राज करो की नीति के तहत विद्रोही गुटों के बीच मध्यस्थता करने की कोशिश की। रिपोर्टों के मुताबिक, कैंप में लगभग 24 हजार सुन्नी अरब कैदी थे जिन्होंने तानाशाह सद्दाम हुसैन की मिलिट्री में सेवाएं दी थीं। बगदादी ने यहां आईएस का ऐलान कर खुद को मुसलमानों का खलीफा घोषित किया। इस रिपोर्ट को अगर सही माना जाए तो यही वह कैंप था जहां आईएसआईएस का जन्म हुआ।

हालांकि कई रिपोर्टों के अनुसार, अबू मुसाब अल जरकावी को आईएसआईएस (इस्लामिक स्टेट इन इराक एंड अल-शाम) का जनक माना जाता है जिसने 2006 में मुजाहिदीन एडवाइजरी काउंसिल ऑफ इराक की घोषणा की। हालांकि, इसी साल 7 जून को अमेरिकी सैन्य कार्रवाई में वह मारा गया और इसके बाद अबु हमजा अल-मुजाहिर को नया नेता बनाया गया। जिसने आंदोलन को इस्लामिक स्टेट ऑफ इराक (ISI) नाम दिया, जो आगे चलकर इराक के ही रहने वाले अबु उमर अल-बगदादी के नेतृत्व में आगे बढ़ा लेकिन दोनों के मरने के बाद अबु बकर अल-बगदादी ने अपने साम्राज्य को फैलाना शुरू किया। संगठन मजबूत होते ही 2013 में इस्लामिक स्टेट इन इराक एंड अल-शाम यानी आईएसआईएस की घोषणा कर दी गई।

नाम में क्या रखा है...
ISIS को सरकारें और मीडिया अलग-अलग नामों से संबोधित करती हैं। सीरिया और इराक के एक बड़े इलाके पर कब्जा जमाए इस्लामिक स्टेट को अमेरिका 'आईएसआईएल' (इस्लामिक स्टेट इन इराक एंड द लेवांत) कहता है फिर भले ही ये गुट मध्य-पूर्व, अफ्रीका और एशिया में कहीं भी अपने पैर क्यों ना पसार चुका हो। जून 2014 के बाद से इस समूह ने खुद ही अपने लिए इस नाम का इस्तेमाल करना बंद करके 'इस्लामिक स्टेट' नाम रख लिया है, जो इसकी महत्वाकांक्षा को दिखाता है।

कई मीडिया समूह इसके लिए 'आईएसआईएस' शब्द का इस्तेमाल करते हैं जो एक समूह के पुराने नाम 'इस्लामिक स्टेट इन इराक एंड सीरिया' या 'इस्लामिक स्टेट इन इराक एंड अल-शाम' पर आधारित है। लेकिन मध्य-पूर्व और दूसरे इलाकों में इसके लिए शब्द 'दाइश' का इस्तेमाल किया जाता है। अरबी भाषा में दाइश का मतलब होता है आस्तीन का सांप या फिर वो शख्स जो अपने पैरों तले किसी को कुचलता है। गौरतलब है कि अल-शाम का इस्तेमाल 7वीं सदी से मुस्लिम खलीफा के शासन के दौरान भूमध्य सागर और युफरेट्स, अनातोलिया (वर्तमान में तुर्की) और मिस्र के बीच के इलाके के लिए किया जाता है तो 'लेवांत' का इस्तेमाल सदियों से अंग्रेजी बोलने वाले लोग भूमध्य सागर के पूर्वी हिस्से और इससे जुड़े द्वीपों और देशों के लिए करते आए हैं।

आतंकी संगठन को इस्लामिक स्टेट कहे जाने पर सबसे पहले फ्रांस ने आपत्ति जताई थी। फ्रांस ने सितंबर में ही इस गुट को दाइश का नाम दिया था। अब दुनिया के ताकतवर देशों ने ऐलान किया है कि इस संगठन को इस्लामिक स्टेट नहीं बल्कि दाइश (Daesh) के नाम से पुकारा जाए।

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