H N Narwariya। बार बार यह कह कर प्रचारित किया जा रहा है की, साथियो ,1.62 का मामला हम जिते है और अब IR विसंगति में भी सुधार करवाने क मामला भी हम जीत गए है। वास्तविक रूप से देखा जाए तो ,ये लोग न्यायलय के नाम का दुरुपयोग करने और आदेशो की तोड़मरोड़कर व्याख्या कर के दुष्प्रचार करने में माहिर है ।
1.62 का मामला :-
कहते है की हमने न्ययालय में केस लगाकर लाभ दिलवाया ,साथियो वास्तविकता यह है की ,1.62 के मामले को लेकर मामला तब गर्म हुआ जब 7 जून 2014 लोकशिक्षण संचालनालय ने एक स्पष्टीकरण निकाल कर कह दिया की , 1 अप्रैल 13 के बाद अध्यापक बनने पर अध्यापक संवर्ग को मूल वेतन 4860 +1250 ,6480 +1650 और 8100 +1900 नहीं मिलेगा ,उन्हें 4500 +1250 ,4500 +1650 ,4500 +1900 मिलेगा।
भाइयो यह मामला 11 जुलाई 14 को विधान सभा में विधायक शैलेन्द्र पटेल और मुरलीधर पाटीदार ने उठाया , जिसमे शिक्षाराज्यमंत्री ने मामले को हल करने का आश्वाशन दे दिया था (पोस्ट के साथ रिकॉर्ड संलग्न है ) । 1.62 के मामले को लेकर लगाई गयी याचिका का निराकरण तो 17 जुलाई को हुआ ( पोस्ट के साथ सलग्न ) जिसमे न्यायालय ने कहा की मामले के अभ्यावेदन को सुना जाए । सरकार द्वारा जब नोटशीट चलायी गयी उसमे भी लिखा है की कई संघो ने ज्ञापन दिया है ,और दो याचिकाओं क हवाला भी दिया गया है । कहने का मतलब यह है की श्रेय के चक्कर में ये लोग न्यायलय का नाम भी उपयोग करने से नहीं चूकते।(नस्ति सलग्न है)
हड़ताल के संबंध में :-
साथियो सर्वविदित है की 23 सितम्बर 2015 को माननीय उच्च न्यायलय ने अध्यापक संवर्ग की हड़ताल पर स्थगन दे दिया था और 24 सितम्बर को विद्यालय में ज्वाइन करने के आदेश दिए थे परन्तु ये लोग उस आदेश की भी मनगढ़ंत व्यख्या करते रहे और अध्यापक साथियो को कहते रहे की आप स्कूल मत जाओ न्यायालय ने हड़ताल अवैध घोषित नहीं की है (आर्डर सलग्न है )। हालांकि यह याचिका बाद में निरस्त कर दी गयी परन्तु ने उस आदेश की भी मनगढ़ंत व्यख्या करते रहे है ,परन्तु बाद में न्यायलय के उसी आदेश के पालन में 26 सितम्बर को अपना आंदोलन स्थगित कर दिया गया। ,अखबारों का तो कहना है की ,जेल से छूटने के लिए आंदोलन स्थगित किया था।
अब IR का मामला :-
इस मामले में भी कहा जा रहा है की माननीय न्यायलय ने अंतरिम राहत में सुधार के निर्देश दिए है , वास्तव में यह केस जीता नही गया है आर्डर मेरिट पर नही हुआ है जिसको आर्डर न कहकर हम डायरेक्शन कहते है , जिसका सामान्य भाषा में अर्थ यह है की न्यायलय ने सरकार का पक्ष बिना जाने यह कहा है कि सरकार याचिकाकर्ता के आवेदन पर नियमानुसार विचार करे | डायरेक्शन की भाषा समझे ----" court has not expressed any opinion on the merits......deciding tha petitioners representation would be at liberty to take in to considaderation.....petitioner stands disposed of." आर्डर ( न्यायलय का आदेश संलग्न है ) ।
भाइयो आग्रह है श्रेय लेने की होड़ में प्रदेश के भोले भाले अध्यापको को न्यायलय के आदेशो की झूठी और मनगढ़ंत व्याख्या कर के भ्रमित न करे । सच्चाई से रूबरू करे क्योकि इसी उहापोह में कई लोगो ने अपनीं ईह लीला समाप्त कर ली है कंही न कंही इसके जिम्मेदार आप भी है । यह भी स्वीकार करे की आप के अतिरिक्त भी लोग अध्यापक हित में काम करते है चलिए उनका काम स्वीकार नहीं कर सकते तो काम से काम गालिया और लोगो को गलियां देने के लिए तो न उकसाएं ।
भवदीय
एच एन नरवारिया