जबलपुर। मध्यप्रदेश हाईकोर्ट के पूर्व निर्देश पर एसटीएफ द्वारा जांच रिपोर्ट पेश कर दिए जाने के बावजूद पीएससी द्वारा साक्षात्कार आयोजित न किए जाने के रवैये पर जवाब-तलब कर लिया गया है। इसके लिए 18 फरवरी तक का समय दिया गया है। मामला 2012 में पीएससी परीक्षा उत्तीर्ण करने के बावजूद साक्षात्कार से वंचित उम्मीदवारों की याचिका से संबंधित है। मामले में राज्य शासन, पीएससी व एसटीएफ को पक्षकार बनाया गया है।
बुधवार को वरिष्ठ न्यायमूर्ति शांतनु केमकर की एकलपीठ में मामले की सुनवाई हुई। इस दौरान याचिकाकर्ता पीयूष तिवारी व नवीन बावरिया की ओर से अधिवक्ता राजेश चंद व सौमित्र दुबे ने पक्ष रखा। उन्होंने दलील दी कि साल 2012 की पीएससी परीक्षा में 1100 उम्मीदवार सफल हुए। इसके बावजूद पेपर-लीक कांड की वजह से उन्हें साक्षात्कार के लिए आमंत्रित नहीं किया गया।
जनहित याचिका पर निर्देश जारी-
इस मामले को लेकर हाईकोर्ट में एक जनहित याचिका दायर की गई। जिस पर सुनवाई के बाद कोर्ट ने जांच एजेंसी एसटीएफ को निर्देश दिया कि 4 माह के भीतर जांच पूरी करके रिपोर्ट पेश की जाए। जिस पर गौर करने के बाद पीएससी साक्षात्कार प्रक्रिया को गति देगी।
जबरन टाले जा रहे साक्षात्कार-
याचिकाकर्ताओं का कहना है कि एसटीएफ ने अपनी जांच रिपोर्ट में सिर्फ 11 संदिग्ध पाए जाने का तथ्य प्रस्तुत किया है। इसके साथ ही साफ कर दिया गया है कि आगे किसी और उम्मीदवार की संलिप्तता पाए जाने की संभावना शून्य है। सवाल उठता है कि इसके बावजूद पीएससी साक्षात्कार प्रक्रिया को बेवजह क्यों टाल रही है? पीएसपी की ओर से प्रेस-रिलीज जारी करके विधिराम नामक संदिग्ध की गिरफ्तारी शेष होने का आधार पेश किया गया है, जो साक्षात्कार को टालने का समुचित व ठोस कारण प्रतीत नहीं होता। ऐसा इसलिए भी क्योंकि 2013 की पीएससी के साक्षात्कार सन्निकट हैं, यदि इससे पहले 2012 के साक्षात्कार नहीं हुए तो वरिष्ठता मारी जाएगी।