भोपाल। सरकार ने दवाओं का मूल्य तय करने का काम दवा कंपनियों पर छोड़ दिया है और खुद एक्साइज ड्यूटी लगाकर मोटी कमाई कर रही है। वहीं कोई कंट्रोल नहीं होने से कंपनियां दवाओं की कीमत में हर साल 10 फीसदी तक इजाफा कर रही हैं। आलम यह है कि 3 रुपए की लागत से बनने वाली दवा को 45 रुपए में बेचा जा रहा है। ऐसे में गरीब बीमार जनता पिस रही है। सरकार की दवा नीति के विरोध, श्रम कानूनों के पालन, न्यूनतम वेतन समेत अन्य मांगों को लेकर भोपाल समेत देशभर के दवा प्रतिनधियों (एमआर) ने बुधवार को हड़ताल की।
प्रदेश के सभी जिला मुख्यालयों में दवा प्रतिनिधि इकट्ठे हुए और सरकार व दवा निर्माताओं की नीतियों के विरोध में नारेबाजी कर आगे की रणनीति तैयार की। भोपाल के दवा बाजार में इकठ्ठे हुए 150 से ज्यादा एमआर ने कहा कि महंगाई में बची कसर सरकार ने एक्साइज टैक्स लगाकर पूरी कर दी। दवाओं पर उतनी ही एक्साइज ड्यूटी लगाई जा रही है जितनी शराब, तंबाकू और सिगरेट पर है। इस तरह कंपनियां और सरकार दोनों दवाओं से मोटी कमाई कर रहे हैं।
मध्यप्रदेश-छत्तीसगढ़ मेडिकल एंड सेल्स रिप्रेजेंटेटिव यूनियन के अध्यक्ष एसके तालुकदार ने कहा कि सरकार का दावा है कि जेनरिक दवा सस्ती होती है, पर ऐसा नहीं है। कई जेनरिक दवाएं ब्रांडेड से भी महंगी हैं। यूनियन के महासचिव शैलेन्द्र शर्मा ने कहा कि सरकार दवाओं का ऑनलाइन कारोबार शुरू करने का मन बना रही है। यह ड्रग एंड कॉस्मेटिक एक्ट का सरासर उल्लंघन है। इससे दवाओं का दुरुपयोग होगा। उन्होंने कहा कि शेड्यूल एच की दवाएं डॉक्टर के पर्चे के बिना नहीं मिल सकती है। तीन साल तक इसका रिकार्ड भी रखना पड़ता है। ऑनलाइन ट्रेडिंग में इसका पालन नहीं हो सकता।
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दवा काम नाम मात्रा -उत्पादन लागत -बाजार मूल्य
-अमलोडिपिन (5 एमजी) - 15 टैबलेट 3.18 रुपए - 45.90 रुपए
-लोसार्टन (50 एमजी) - 10 टैबलेट 8.35 रुपए - 43 रुपए
-एसाइक्लोवीर (200 एमजी)- 10 टैबलेट 11.50 रुपए - 73 रुपए
-अमॉक्सीक्लेव (650 एमजी) - 6 टैबलेट 26.50 रुपए - 144 रुपए
-इंसुलिन 25/75 - 49.80 रुपए -166.70 रुपए
नोटः अब इन कीमतों में 10 फीसदी की और बढ़ोतरी हो चुकी है।
एमआर की मांगें
दवाओं के दाम कम किए जाएं ।
8 घंटे का काम तय हो।
महिला दवा प्रतिनिधियों को 6 माह का मातृत्व अवकाश मिले।
सरकारी अस्पतालों में डॉक्टरों से मिलने की अनुमति हो।
दवाओं का गलत व्यापार रोका जाए।
न्यूनतम वेतन 15000 रुपए किया जाए।