नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को व्यवस्था दी कि भारतीय रिजर्व बैंक को उन बैंकों तथा वित्तीय संस्थानों के खिलाफ सख्त कार्रवाई करनी चाहिए जो 'बदनामी वाले कारोबारी व्यवहार' में संलिप्त हैं। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वह सूचना के अधिकार कानून के दायरे में आने वाले मामलों और बकाएदारों से संबंधित सूचनाएं रोक नहीं सकता है।
न्यायमूर्ति एम.वाई. इकबाल और न्यायमूर्ति सी. नागप्पन की पीठ ने कहा कि हमारा अनुमान है कि अनेक वित्तीय संस्थाएं ऐसा कृत्य कर रही हैं जो न तो साफ-सुथरा है और न ही पारदर्शी है।
रिजर्व बैंक इनके साथ मिलकर उनके कृत्यों को जनता की नजरों से बचाने की कोशिश कर रहा है। कोर्ट ने कहा कि यह रिजर्व बैंक की जिम्मेदारी है कि वह उन बैंकों के खिलाफ कठोर कार्रवाई करे जो इस तरह के अशोभनीय कारोबारी व्यवहार कर रही हैं।
शीर्ष अदालत ने स्पष्ट किया कि भारतीय रिजर्व बैंक वित्तीय संस्थाओं के साथ गोपनीयता या विश्वास की 'आड़' में सूचना देने से इंकार नहीं कर सकता है और आम जनता द्वारा मांगी गई जानकारी उपलब्ध कराने के लिए जवाबदेह है।
पीठ ने कहा कि रिजर्व बैंक और दूसरे बैंकों ने 'विश्वास के रिश्ते' और 'आर्थिक हितों' की दुहाई देते हुए अपेक्षित सूचना उपलब्ध कराने की जनता की मांग को दरकिनार किया है। रिजर्व बैंक का यह रवैया उनमें और अधिक संदेह तथा अविश्वास को ही जन्म देगा। नियामक प्राधिकरण के रूप में रिजर्व बैंक को बैंकों को उनके कृत्यों के लिए जवाबदेह बनाना चाहिए।
कोर्ट ने कहा कि सूचना के अधिकार कानून की धारा 2(एफ) के अंतर्गत स्पष्ट प्रावधान है कि निरीक्षण रिपोर्ट और दस्तावेज 'सूचना' के दायरे में आते हैं जो सार्वजनिक प्राधिकार (रिजर्व बैंक) निजी संस्था से प्राप्त करती है।
शीर्ष अदालत ने कहा कि भारतीय रिजर्व बैंक का यह कर्तव्य आमतौर पर जनहित को बनाए रखना है। सूचना के अधिकार के प्रावधानों का पालन करना तथा जनता द्वारा मांगी गई सूचना उपलब्ध कराना उसका कर्तव्य है।
कोर्ट ने सूचना के अधिकार कानून के तहत भारतीय रिजर्व बैंक को आवेदकों को अपेक्षित सूचनाएं उपलब्ध कराने संबंधी केंद्रीय सूचना आयोग के निर्देश को लेकर विभिन्न हाई कोर्ट से स्थानांतरित की गई याचिकाओं पर यह फैसला सुनाया।