राघवेंद्र बाबा/इंदौर। एक परिवार तीन पीढ़ियों (सौ साल से) से कब्रों के साथ रहता है। इसे घर में कब्रिस्तान या कब्रों का घर भी कह सकते हैं। होलकर राजघराने से इनाम में मिली 6 एकड़ जमीन धीरे-धीरे दो कमरों में सिमट गई। यूं तो कब्रिस्तान की जमीन पर कोई लिखा-पढ़ी नहीं होती, लेकिन एक पक्ष ने इसे गिरवी रखने और खुद का कब्जा बताकर कोर्ट में केस भी लगा रखा है।
बम्बई बाजार के पास कड़ावघाट की टेकरी पर रहने वाले लियाकत शाह का परिवार इन 13 कब्रों के साथ जिंदगी बिताने को मजबूर हैं। भले ही ये लोग आदी हो चुके हों, लेकिन मन में कसक है कि उन्हें इस आशियाने की लिखित जिम्मेदारी कोर्ट से मिले। परिवार में 63 साल की बूढ़ी मां खातून बी, भाई अफजल की पत्नी बच्चे मिलाकर 15 सदस्य हैं। सोने वाले कमरे में तीन और रसोईघर में चार कब्रें हैं। प्रसिद्ध मजार भी है। बाकी छह कब्रें ओटले पर हैं।
मजार पर आते थे होलकर राजा
खातून बताती हैं कि उनके दादा ससुर मुजावर मैहर अली शाह को ब्दीउद्दीन कुतबुल साहेब की मजार की देखरेख के लिए 1912 के पहले होलकर स्टेट ने 6 एकड़ जमीन दी थी। सिरपुर की मजार और कनाड़िया में भी कुछ जमीन दी थी, लेकिन धीरे-धीरे सब पर कब्जा होता गया। खातून भी इसी परिवार में शराफत शाह से 49 साल पहले ब्याही गई। तब इलाके में ज्यादातर खेती होती थी। खातून को बुजुर्गों ने बताया कि दादा की होलकर स्टेट में खासी पूछ परख हुआ करती थी।
पंढरीनाथ में होलकर कालीन पड़ाव हुआ करता था। मजार के पास ही उन लोगों की कब्रों को स्थान दिया गया, जो उस युद्ध में शहीद हुए। इनमें केवल 13 के अवशेष हैं। तब होलकर राजा भी मजार के दर्शन करने आते थे। होलकर स्टेट के सील-सिक्के लगे दस्तावेज आज भी शाह परिवार के पास हैं। उस दौरान होलकर राजा को मुजावर मैहर अली शाह चिट्ठियां लिखा करते थे, जिनका जवाब भी शासन की तरफ से बराबर आता था।
आज भी संघर्ष जारी
परपोता लियाकत इस मजार की देखभाल के साथ छोटा-मोटा धंधा भी करता है। इस जमीन पर इलाके का ही तंबाखूवाला परिवार अपना हक जताता है। उनका कहना है कि लियाकत के पिता ने इस जमीन को गिरवी रख दिया था, जबकि लियाकत होलकर कालीन सारे दस्तावेज लेकर हर बार कोर्ट में पेश होता है। 23 जनवरी को भी मामले में पेशी थी।
जिला प्रशासन की तरफ से भी इस जमीन की नपती होना है और परिवार अपने ही मकान को बचाने में संघर्ष कर रहा है। घर के बाहरी हिस्से में लियाकत ने दुकान के लिए गड्ढा खोदा तो वहां भी हड्डियां निकलीं। इसके बाद गड्ढा भर दिया गया।
सुध लेने नहीं आता कोई
मैहर अली के परपोते लियाकत का कहना है कि ये कब्रें सौ सालों से भी ज्यादा पुरानी हैं। घर में हैं और व्यवस्थित हैं, लेकिन कोई सुध लेने नहीं आता। लोग मजार के दर्शन करने जरूर आते हैं।