भोपाल। मंत्रियों की मेहरबानी से मंत्रालय में नौकरी पाने का नियम अब एक छोटे से कर्मचारी की जिद से बदल रहा है। इस नियम के तहत 20 सालों में 5 हजार से ज्यादा नियुक्तियां हो चुकी हैं। अब योग्यता के आधार पर खुली भर्ती होगी।
यह नियम बदलवाने के लिए मंत्रालय में बाबू (सहायक ग्रेड-3) महासिंह ने शासन से लड़ाई लड़ी। मुख्यमंत्री कार्यालय के चक्कर काटे, लेकिन सीएम से मिलने का मौका नहीं मिला। कई बार मुख्य सचिव के ऑफिस गए लेकिन दुत्कार मिली। मंत्री नाराज हुए तो तीन बार ट्रांसफर कर दिया गया। सांसदो-विधायकों से मिलने का समय लिया। कई मिले, कई ने भगा दिया।
झुक गई सरकार
डेढ़ साल की लड़ाई के बाद उनकी जिद के आगे सरकार भी झुक गई है। चतुर्थ श्रेणी के पद बैक डोर एंट्री के बजाए खुली भर्ती से भरे जाने के नियम बनने जा रहे हैं। सामान्य प्रशासन विभाग के अफसर आरक्षण के नए प्रस्ताव का परीक्षण कर रहे हैं। जल्द ही यह मंजूरी के लिए कैबिनेट को भेजा जाएगा। नए प्रस्तावित नियमों के अनुसार साइकिल चलाने और शुद्धलेखन की परीक्षा होगी। साक्षात्कार के जरिये काबिलियत भी परखी जाएगी।
15 साल से खाली पड़े आदिवासियों के 55 पद
मरावी कहते हैं कि यह संविधान के अनुच्छेद 14 (अवसरों की समानता) का उल्लंघन है। मौजूदा भर्ती नियम में अनुसूचित जाति और जनजाति के आरक्षण का कोई प्रावधान नहीं है। यही वजह है कि आदिवासियों से भरे जाने वाले 55 पद बीते पंद्रह साल से खाली पड़े हैं।
अब 40 विधायक, 3 सांसद समर्थन में
मंत्रियों द्वारा अपने 7 चहेतों को मंत्रालय में नियुक्ति दिलाने की व्यवस्था पर महासिंह हैरान थे। डेढ़ साल पहले उन्होंने इस व्यवस्था के खिलाफ अकेले ही लड़ाई शुरू की। फिर गोंडवाना महासभा सामाजिक संगठन बनाया। सांसद, विधायकों से मिले और अपनी बात समझाई। सांसद फग्गन सिंह कुलस्ते, मनोहर ऊंटवाल समेत 3 सांसद और 40 विधायक समर्थन में आए। विधायकों की फेहरिस्त लंबी है। सामान्य प्रशासन विभाग (जीएडी) राज्यमंत्री लालसिंह आर्य भी मरावी के पक्ष में हैं।
गांव-गांव जाकर चंदा लिया
महासिंह के पास रहने का स्थायी ठिकाना नहीं है। भीमनगर की झुग्गी में रहता है। गोंडवाना महासभा बनाने के बाद गांव-गांव जाकर जाकर उन्होंने लोगों से पांच-पांच रु. चंदा लिया। वे अब तक एक लाख रु. से ज्यादा स्वयं खर्च कर चुके हैं।