
डूम्सडे क्लॉक यानी धरती पर मंडरा रहे खतरों का आकलन करने वाले वैज्ञानिकों का कहना है कि बीते तीन साल में क्लाइमेट चेंज और परमाणु हथियारों के कारण धरती पर मंडरा रहा खतरा इतना बढ़ गया है कि वह कभी भी अंत के करीब पहुंच सकती है।
इसी के मद्देनजर उन्होंने इस काल्पनिक डूम्सडे क्लॉक को रात्रि 12 बजे से तीन मिनट पहले पर सेट कर दिया गया है। इसका मतलब हुआ कि धरती के सफाये का खतरा बहुत ज्यादा है।
इस घड़ी को 68 साल पहले शुरू किया गया था। शिकागो के अटॉमिक साइंटिस्ट्स के बुलेटिन को तैयार करने वाले लोग ही इस क्लॉक को सेट करते हैं। बुलेटिन ऑफ द एटॉमिक साइंटिस्ट्स के एक्िजक्यूटिव डायरेक्टर रैशल ब्रॉन्सन ने बताया कि पिछले 20 सालों में यह बर्बादी के काफी करीब पहुंच गई है।
एरिजोना स्टेट यूनिवर्सिटी के कॉस्मोलॉजिस्ट और प्रोफेसर लॉरेंस क्रूस ने बताया कि ग्लोबल वॉर्मिंग, आतंकवाद, अमेरिका और रूस के बीच परमाणु तनाव, उत्तर कोरिया के हथियारों की चिंता, पाक-भारत के बीच तनाव अस्थिरता फैलाने वाले हैं। उन्होंने कहा कि वर्ष 2015 से इस घड़ी के समय में बदलाव नहीं करना अच्छी बात नहीं है।
क्या है डूम्सडे क्लॉक
यह धरती पर मंडरा रहे खतरों का आकलन करने वाली एक काल्पनिक घड़ी है। इसे 1947 में बनाया गया था, जिसमें शुरुआती टाइम 7 से 12 मिनट रखा गया था। तब हिरोशिमा और नागासाकी पर एटमी हमले हुए थे। इसके बाद से 18 बार मिनट सुई को आगे या पीछे किया जा चुका है।
इससे पहले 2012 में भी मिनट सूई बढ़ाई गई थी और तब भी परमाणु बम और क्लाइमेट चेंज का खतरा बताया गया था। इसे सेट करने वाली टीम में 16 नोबेल पुरस्कार विजेता हैं और इस क्लॉक को काफी गंभीरता से लिया जाता है।
जब धरती के अस्तित्व को लेकर खतरे की स्थिति बनती है, तो मिनट की सुई को रात्रि 12 बजे के करीब कर दिया जाता है। जब संपन्नता होती है, तो इसके समय को बढ़ा दिया जाता है। 1953 में इसे 12 बजने में दो मिनट पहले तय किया गया था और 1991 में 17 मिनट पहले तय किया गया था।