नईदिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने एक अहम फैसले में व्यवस्था दी है कि यदि हत्यारे से ऐसे व्यक्ति की हत्या हो जाती है जिसे मारने का उसका इरादा नहीं था तो ऐसे व्यक्ति की मौत को हत्या ही माना जाएगा गैरइरादतन हत्या (धारा 304) नहीं। कोर्ट ने कहा ऐसे मामले में उसके द्वेष (हत्या के इरादे) का हस्तांतरण मरने वाले व्यक्ति पर हो जाएगा और उसे हत्या की सजा ही मिलेगी।
जस्टिस एमवाई इकबाल और अरुण कुमार मिश्रा की पीठ ने यह फैसला देते हुए हाईकोर्ट फैसले को रद्द कर दिया जिसमें उसे धारा 302 में मिली सजा को रद्द कर धारा 304 यानी गैरइरादतन हत्या में दंडित (आठ वर्ष की सजा और 50 हजार रुपये का जुर्माना) कर दिया गया था। सर्वोच्च अदालत ने रामकैलाश को धारा 302 के तहत दोषी मानकर उसकी दोषसिद्धी को बरकरार कर दिया। पीठ ने कहा कि हाईकोर्ट को इस मामले में धारा 301 (द्वेष का हस्तांतरण) को ध्यान में रखना चाहिए था।
धारा 301 में द्वेष का हस्तांतरण स्पष्ट है। हाईकोर्ट का कहना था कि अभियुक्त को पता नहीं था कि वह मोटरसाइकिल पर जा रहे दोनों में से किसे हानि पहुंचा रहा है। वहीं इस मामले में मौत भी एक ही गोली से हुई है। राजस्थान सरकार ने इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी।
पीठ ने फैसले में कहा कि हाईकोर्ट द्वेष स्थानांतरण के इस अहम पक्ष को देखने में विफल रहा है। इसमें कोई संदेह नहीं है किसकी गोली से हत्या हुई। वहीं यह भी साफ है कि अभियुक्त हत्या ही करना चाहता था। इसमें सिर्फ यही देखना है कि किया गया शारीरिक नुकसान धारा 300 (हत्या) के तहत कवर होता है या नहीं। कोर्ट ने कहा कि अभियुक्त जानता था कि उसके फायरिंग के कृत्य से उस आदमी की जान जा सकती है जिसकी जान लेने का उसका इरादा है। इसमें यह नहीं माना जा सकता कि अभियुक्त अपने कृत्य से मृत्यु हो जाने की संभावना से अनभिज्ञ था। उसका कृत्य पूरी तरह से धारा 300 के दायरे में आता है।
धारा 301 : अगर ऐसे व्यक्ति की हत्या की जाती है जिसकी हत्या का अभियुक्त का इरादा नहीं था तो इसे हत्या ही माना जाएगा और इसमें उसके द्वेष का स्थानांतरण मृत व्यक्ति पर हो जाएगा। यानी इसमें सजा उतनी ही मिलेगी।