राकेश दुबे@प्रतिदिन। वाचा खान यूनिवर्सिटी पर हमले की जिम्मेदारी तहरीक-ए-पाकिस्तान ने ली है. उमर मंसूर तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (टीटीपी) के एक गुट का नेता है। हालांकि टीटीपी के विभिन्न गुटों में इस तरह की आतंकवादी वारदात करने के बारे में मतभेद साफ दिख रहे हैं। यह भी साफ है कि टीटीपी पाकिस्तान-अफगानिस्तान के सीमावर्ती इलाकों में और हमले कर सकता है। हमले की जिम्मेदारी लेने वाले गुट ने धमकी दी है कि उसके अगले निशाने भी स्कूल, कॉलेज जैसे संस्थान बन सकते हैं।
कहने को पाकिस्तान में सेना टीटीपी के खिलाफ काफी आक्रामक कार्रवाई कर रही है, टीटीपी भी बदले में लगातार आतंकवादी वारदात कर रहा है। किसी समय इस संगठन को खुद पाकिस्तानी सेना और आईएसआई ने ही बनाया और पाला-पोसा था, लेकिन पाकिस्तान में अपनी ताकत और वर्चस्व बढ़ाने के लिए टीटीपी ने आतंकवादी वारदात का रास्ता अपना लिया। पाकिस्तान में जो लोग टीटीपी के हमलों में मारे गए, उनकी तादाद हजारों में है।
प्रधानमंत्री नवाज शरीफ और खैबर पख्तूनख्वा में सत्तारूढ़ पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ पार्टी के अध्यक्ष और पूर्व क्रिकेटर इमरान खान टीटीपी को सख्ती से कुचलने की बजाय उससे बातचीत के समर्थक रहे हैं, लेकिन राहील शरीफ की रणनीति यह है कि अफगान-तालिबान को समर्थन दिया जाए, या जो भी गुट पाकिस्तान में सक्रिय नहीं हैं, उन्हें कुछ न कहा जाए, लेकिन टीटीपी या लश्करे झांगवी जैसे पाकिस्तान में सक्रिय गुटों के प्रति रियायत न बरती जाए। इस अनिर्णय के कारण टीटीपी भी लगातार सैनिक ठिकानों पर हमले कर रहा है। स्कूल, कॉलेज पर हमलों के पीछे उसका कुतर्क यही है कि सेना अगर हमारे बच्चों को मारेगी, तो हम भी उनके बच्चों को मारेंगे।
पाकिस्तानी सेना अब भी भारत और अफगानिस्तान में आतंकवादी गुटों का इस्तेमाल करना चाहती है, हालांकि अब यही नीति उसे नुकसान पहुंचा रही है। एक ओर जहां आतंकवादी गुट उसके काबू से छूट रहे हैं, तो दूसरी ओर सेना में कट्टर धार्मिक गुट तैयार हो गए हैं, जो जरूरी नहीं कि पेशेवर सैनिक नेतृत्व को मानें।
- श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
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