राकेश दुबे@प्रतिदिन। पाकिस्तान की अदालत ने फेडरल इन्वेस्टिगेशन एजेंसी (एफआईए) की अर्जी ठुकरा दी है। एफआईए हमारी सीबीआई की तरह पाकिस्तान की केंद्रीय जांच एजेंसी है और उसने अदालत से दरख्वास्त की थी कि 26/11 के आरोपियों के आवाज के नमूने लेने की इजाजत दी जाए, ताकि भारत ने आतंकियों और पाकिस्तान में बैठे उनके आकाओं के बीच 26/11 के हमले के दौरान की बातचीत की जो रिकार्डिंग दी है, उससे आवाजों का मिलान हो सके।
ऐसा लगता है कि न एफआईए, न पाकिस्तानी न्यायपालिका इस बाबत गंभीर है कि लश्कर-ए-तैयबा के खिलाफ 26/11 के मामले में कार्रवाई हो। पाकिस्तान में इस वक्त जिन आतंकवादी संगठनों के खिलाफ कार्रवाई हो रही है, लेकिन लश्कर-ए-तैयबा उनमें से नहीं है। लश्कर पर तकनीकी तौर से पाकिस्तान में पाबंदी है, फिर भी वहां यह संगठन अच्छी तरह फल-फूल रहा है। यह ऐसा संगठन है, जिसे सेना और आईएसआई का समर्थन मिला हुआ है, क्योंकि वह पाकिस्तान में कोई आतंकी वारदात नहीं करता।
वह मुख्यत: भारत को निशाना बनाने वाला आतंकवादी संगठन है और पिछले कुछ वक्त में उसने पश्चिमी देशों में भी अपना जाल बिछा लिया है। लश्कर का सहयोगी संगठन जमात-उद-दावा को भी अंतरराष्ट्रीय आतंकवादी संगठन घोषित किया जा चुका है, मगर पाकिस्तान की जनता के बड़े हिस्से में इस संगठन के लिए काफी समर्थन है, क्योंकि वहां यह समाजसेवा का काम कर रहा है। एफआईए की अर्जी दो बार खारिज होने की जो वजह अदालत ने बताई है, वही मामले को साफ कर देती है।अदालत ने दोनों बार यही कहा कि एफआईए इस केस में गंभीरता से काम नहीं कर रही है, इसलिए उसकी अर्जी को मंजूर नहीं किया जा सकता। कई महीनों तक कुछ न करने के बाद एकाध बार वह अदालत में ऐसी एक अर्जी डाल देती है, जो नामंजूर हो जाती है। पाकिस्तान की सरकार इसी दाव से सबको भ्रमित करते हैं |
- श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
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