जिनेवा: दुनिया इबोला नाम की एक आफत से अभी निपटी भी नहीं है कि मेडिकल जगत के सामने एक और महामारी का ख़तरा छा गया है। अब जीका वायरस दुनियाभर के डॉक्टरों और स्वास्थ्य से जुड़े वैज्ञानिकों के सामने नई चुनौती बनकर उभर गया है। ताजा खबर यह है कि दुनिया के कम से कम 22 देशों में यह वायरस फैल चुका है और लैटिन अमेरिकी देश इसकी सबसे ज्यादा चपेट में हैं।
ब्राजील में हालात सबसे खराब
ब्राजील में हालात सबसे खराब बताए जा रहे हैं। यहां आशंका है कि हजारों लोग इस वायरस से संक्रमित हो सकते हैं। मच्छरों के जरिये फैलने वाले इस वायरस से ऐसी बीमारी हो रही है, जिससे बच्चों में मस्तिष्क का विकास रुक जाता है और उनके मस्तिष्क का आकार भी सामान्य से छोटा हो जाता है। ब्राज़ील में अक्टूबर से अब तक इसके 4,120 संदिग्ध केस आ चुके हैं। इनमें से 270 की लैब टेस्ट में पुष्टि हो चुकी है। ब्राज़ील की सरकार के मुताबिक, वहां के इतिहास में यह किसी भी बीमारी का सबसे घातक आक्रमण है।
लोगों को जागरूक करने लगाए करीब 2 लाख सैनिक
ब्राजील के स्वास्थ्य मंत्री का कहना है कि उनका देश इस बीमारी से काफी नुकसान झेलता दिख रहा है। जीका संक्रमण को रोकने के लिए ब्राजील ने अपनी सेना के करीब सवा दो लाख सैनिकों को भी लगा दिया है। ये सैनिक घर-घर जाकर लोगों को जीका के प्रति सचेत करेंगे और पोस्टरों के जरिये जागरूक करने की कोशिश करेंगे।
जीका वैक्सीन तैयार होने में लगेंगे अभी दो साल
इस बीच वैज्ञानिकों का कहना है कि जीका की वैक्सीन तैयार होने में अभी दो साल लग सकते हैं जबकि इसके आम लोगों तक पहुंचने में अभी एक दशक तक लग सकता है। यही वजह है कि सबका जोर इस बीमारी को फैलने से रोकने पर है। ब्राज़ील, अर्जेंटीना, अमेरिका समेत कई देशों की प्रयोगशालाओं में वैज्ञानिक इसका उपचार ढूंढ रहे हैं।
ओलिंपिक खेल होने हैं ब्राजील में
इस साल अगस्त में ब्राजील के रियो डि जिनेरो में ओलिंपिक खेल होने वाले हैं। ब्राज़ील सरकार को डर है कि दुनिया भर से आने वाले खिलाड़ी और दर्शक कहीं इस बीमारी की चपेट में आकर इसका वायरस दुनियाभर न फैला दें। ऐसे में अभी तरीका यही है कि इसके वायरस के संक्रमण पर जल्द से जल्द काबू पाया जाए। यही वजह है कि ब्राजील की सरकार ने मच्छरों के खिलाफ अभियान छेड़ दिया है। जिन स्टेडियमों में ओलिंपिक खेल होने हैं, वहां मच्छरों को पनपने से रोकने में कोई कसर नहीं छोड़ी जा रही है। जीका वायरस का मच्छर रुके हुए साफ पानी में पनपता है जैसे डेंगू में होता है।
WHO का अलर्ट
WHO ने इस बीमारी को लेकर दुनियाभर में अलर्ट जारी कर दिया है। खासतौर पर उत्तरी और दक्षिणी अमेरिका में।
उसका शुरुआती अनुमान है कि तीस से चालीस लाख लोग इस बीमारी की चपेट में हो सकते हैं।
ब्राज़ील की राष्ट्रपति डिल्मा रोसेफ़ ने लेटिन अमेरिका के देशों से कहा है कि वह इस वायरस का मुक़ाबला करने के लिए एकजुट हो जाएं।
इक्वाडोर में हुए एक सम्मेलन में डिल्मा रोसेफ़ ने कहा कि इस बीमारी से निपटने का एक ही तरीका है कि इसके बारे में जानकारी फैलाई जाए।
इस संबंध में लेटिन अमेरिकन देशों के स्वास्थ्य मंत्रियों की एक बैठक अगले हफ़्ते बुलाई गई है।
इस बीमारी के लक्षण
बच्चों और बड़ों में इसके लक्षण लगभग एक ही जैसे होते हैं
जैसे बुखार, शरीर में दर्द, आंखों में सूजन, जोड़ों का दर्द और शरीर पर रैशेस यानी चकत्ते
कुछ लोगों में इसके लक्षण नहीं भी दिखते
कुछ बड़े ही कम मामलों में यह बीमारी नर्वस सिस्टम को ऐसे डिसऑर्डर में बदल सकती है, जिससे पैरलिसिस भी हो सकता है
इस बीमारी से सबसे ज़्यादा ख़तरा गर्भवती महिलाओं को है, क्योंकि इसके वायरस से नवजात शिशुओं को माइक्रोसिफ़ेली होने का ख़तरा है।
इसमें बच्चों के मस्तिष्क का पूरा विकास नहीं हो पाता और उनका सिर सामान्य से छोटा रह जाता है
इस बीमारी का इतिहास
1947 में यूगांडा के ज़ीका के जंगलों में बंदरों में यह वायरस पाया गया। इसी से इस वायरस का नाम ज़ीका पड़ा।
1954 में पहले इंसान के अंदर ये वायरस देखा गया। इसके बाद कई दशक तक ये इंसानी आबादी के लिए बड़े ख़तरे के तौर पर सामने नहीं आया और यही वजह रही कि वैज्ञानिक समुदाय ने इसकी ओर गंभीरता से ध्यान नहीं दिया।
2007 में माइक्रोनेशिया के एक द्वीप याप में इस वायरस ने बड़ी तेज़ी से पैर पसारे और फिर यह वायरस कैरीबियाई देशों और लेटिन अमेरिका के देशों में फैल गया।
अब उत्तरी और दक्षिणी अमेरिका के कई देश इसकी चपेट में हैं। अल सल्वाडोर की सरकार ने तो अपने देश में महिलाओं से अपील की है कि वह अगले दो साल गर्भधारण से बचें। इसे कई लोगों ने बड़ी ही क्रूर अपील बताया है।