राकेश दुबे@प्रतिदिन। प्रदूषण से मुक्ति के लिए तरसती गंगा के उद्धार के लिए नमामि गंगे योजना का प्रवाह अब जल संसाधन मंत्रालय के साथ ही अन्य मंत्रालयों की फाईलों की ओर मोड़ दिया गया है। यह न सिर्फ मोदी सरकार की इस महत्त्वाकांक्षी योजना की कामयाबी, बल्कि इसके आड़े आ रही चुनौतियों से निपटने के लिए भी वक्त की जरूरत है। इसके तहत केंद्र सरकार ने मानव संसाधन, ग्रामीण विकास, पर्यटन, आयुष, जहाजरानी, पेयजल और स्वच्छता तथा युवा मामलों के मंत्रालयों को भी इसमें शामिल करने का फैसला किया है। मानव संसाधन मंत्रालय को गंगा सहित देश की अन्य नदियों की सफाई और पुनर्जीवन की खातिर नदी विज्ञान की पढ़ाई के लिए एक राष्ट्रीय संस्थान या विश्वविद्यालय की रूपरेखा तैयार करने को कहा गया है। इस संस्थान से निकलने वाले विशेषज्ञ गंगा सहित देश की अन्य नदियों और जलस्रोतों की स्वच्छता सुनिश्चित करने में सहयोग देते रहेंगे।
यह मंत्रालय पर्यावरण-साक्षरता और नदी-स्वच्छता के प्रति जनजागरूकता के प्रसार का भी काम करेगा। पेयजल और स्वच्छता मंत्रालय को जिम्मेदारी दी गई है कि ठोस और तरल कचरे के निस्तारण की सुविधाएं ग्राम पंचायतों के सहयोग से ग्रामीण इलाकों तक पहुंचाए और आदर्श गंगा ग्राम बनाए। पर्यटन मंत्रालय को पर्यावरण-अनुकूल गतिविधियां संचालित-प्रोत्साहित करने, आयुष मंत्रालय को गंगा क्षेत्र में औषधीय बागवानी और विविधता सुनिश्चित करने, जहाजरानी मंत्रालय को नौवहन और नदी परिवहन का ढांचा तैयार करने, ग्रामीण विकास मंत्रालय को नरेगा के तहत नमामि गंगे योजना संबंधी कार्य कराने आदि के काम सौंपे गए हैं।
इस समूची कवायद के बीच यह सवाल मुंह बाए खड़ा है कि विभिन्न मंत्रालयों के बीच दायित्वों के आबंटन मात्र से क्या नमामि गंगे योजना की कामयाबी सुनिश्चित हो जाएगी? गौरतलब है कि सत्ता में आते ही प्रधानमंत्री ने गंगा सफाई को अपनी सर्वोच्च प्राथमिकताओं में शुमार करते हुए इस दिशा में तेजी से प्रयास करने की बात कही थी। वह तेजी फिलहाल महज कागजों में नजर आती है, जमीन पर तो यह योजना कछुआ चाल की शिकार है। अफसोसनाक यह भी है कि गंगा सफाई के मद में पिछले तीस सालों में चार हजार करोड़ से ज्यादा की रकम बहाई जा चुकी है, लेकिन नजीजा ढाक के तीन पात है। गंगा में शहरों के सीवरों-नालियों की गंदगी और औद्योगिक कचरा लगातार बढ़ता-बहता रहा है। मोदी सरकार ने पांच साल में बीस हजार करोड़ रुपए खर्च करके गंगा को समग्र तौर पर संरक्षित और स्वच्छ करने का लक्ष्य तय किया है। लेकिन यहां ध्यान रखना चाहिए कि किसी योजना के लिए आबंटित ज्यादा रकम उसकी सफलता की गारंटी नहीं हो सकती।
- श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
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