भोपाल। आदिम जाति क्षेत्रीय विकास योजना में पदस्थ आईएएस अफसर रेनु तिवारी पर विद्युत लाबी इस कदर भारी पड़ी कि सरकार ने उनका तबादला कर दिया। दरअसल श्रीमती तिवारी ठेकेदारों का एकाधिकार समाप्त करवाने के लिए मौजूदा निविदा की शर्तों में बदलाव व आवंटन नियमों के बनाने पर अड़ी हुई थीं। उनका यह कदम ठेकेदारों व उनसे जुड़े सफेदपोशों को पसंद नहीं आ रहा था, लिहाजा सरकार ने उनके दबाव के चलते श्रीमती तिवारी को वहां से हटाक खादी एवं ग्रामोद्योग विभाग में प्रबंध संचालक पदस्थ कर दिया।
सूत्रों के अनुसार इस विवाद का कारण आदिवासी बाहुल्य क्षेत्रों में विद्युतीकरण के नाम पर 200 करोड़ रुपए के बजट के आवंटन और ठेके देने की शर्तों को लेकर संचालक आदिम जाति क्षेत्रीय विकास में विद्युतीकरण के नाम पर करोड़ों रुपए का घालमेल किया जा रहा है। बड़े ठेकेदार और उनकी मध्यस्थता करने वाले सफेदपोश निविदा की शर्तें ऐसे बना दी जिसके विरोध में अब तक पांच जनहित याचिकाएं हाईकोर्ट जबलपुर में दाखिल की जा चुकी है। इन्हीं याचिकाओं को देखते हुए ही तत्कालीन संचालक आदिम जाति क्षेत्रीय विकास योजनाएं श्रीमती रेनु तिवारी ने कुछ ठेकेदारों के एकाधिकार को समाप्त करने मंशा से निविदा की शर्तों में संशोधन करने के लिए प्रमुख सचिव आदिम जाति कल्याण को नोटशीट लिखी थी। इसके अलावा उन्होंने विद्युतीकरण के लिए जिलों को बजट आवंटित करने के नियम बनाने पर भी जोर दिया था। वे अपने मकसद में कामयाब होतीं इसके पहले ही विद्युत ठेकेदारों और उनकी वकालत करने वाले रसूखदारों ने उन्हें हटवा दिया।
शर्तों को बदलने लगा चुके पांच याचिकाएं
आदिम जाति कल्याण विभाग में कुछ बड़े ठेकेदारों ने अपना एकाधिकार जमा लिया है। यही वजह है कि विद्युतीकरण के लिए निविदा के शर्तें ऐसी बनाई गई हैं।
ठेकेदार के रसूख को देखकर बजट आवंटन
संचालनालय आदिम जाति क्षेत्रीय विकास में विद्युतीकरण के नाम पर बजट का आवंटन ठेकेदारों के रसूख को देखते हुए किया जाता है, जबकि सामान्य तौर पर बजट का आवंटन आदिवासियों की जनसंख्या के आधार पर किया जाना चाहिए। चालू वित्तीय वर्ष में ठेकेदारी के दबाव में उन जिलों में अधिक राशि का आवंटन कर दिया गया, जहां कि आदिवासियों की संख्या बहुत ही कम है। जैसे भोपाल, रायसेन, विदिशा और उज्जैन जिले में 5 से 9 करोड़ रुपए तक बजट का आवंटन किया गया, जबकि मंडला, डिंडौरी, शहडोल, छिंदवाड़ा जैसे आदिवासी बाहुल्य जिलों में बजट का आवंटन कम किया गया। सूत्रों ने बताया कि इसे लेकर ही तत्कालीन संचालक आदिम जाति क्षेत्रीय विकास श्रीमती तिवारी ने अपनी आपत्ति दर्ज कराई थी।
इनका कहना है….
बिजली का खेल बहुत ही वैसा है। कुछ बड़े ठेकेदार रेट लेते हैं और काम लोअर ठेकेदारों से कराते हंै। जहां तक बजट के आवंटन का प्रश्र है तो उसमें अब ऐसा नहीं चलेगा। पापुलेशन के आधार पर ही बजट का आवंटन किया जाएगा। रेनु तिवारी क्यों हटीं, इस विषय में कुछ भी नहीं कह सकता हूं। वे आईएएस हैं। जहां भी कलेक्टर रहीं, पांच महीने से ज्यादा नहीं रह सकीं।
– ज्ञान सिंह, आदिम जाति कल्याण मंत्री