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गांधी पगडी उतारो एक नजर
जब सेठ अब्दुल्ला अपने बैरिस्टर को कचहरी दिखाने ले गये। वहाॅ उन्होने वकीलो से परिचय कराया और फिर एक मजिस्ट्रेट की अदालत में ले गए। मजिस्ट्रेट बडी देर तक गांधीजी को घूरता रहा, फिर बोला तुम अपनी पगडी उतारो गांधीजी उस समय बंगाली पगडी पहने हुये थे। उन्होने मजिस्ट्रेट की आज्ञा मानने से इन्कार कर दिया और अदालत के बाहर निकल आए। गांधीजी का अंग्रेजो से यह पहला मोर्चा था। बाहर निकल कर उन्होने सोचा कि पगडी के स्थान पर टोप क्यो न लगाया जाये। पर सेठ को उनका यह विचार पसन्द नही आया। उन्होने कहा बैरिस्टर साहब , यदि आप इस समय ऐसा करेगे तो उसका प्रभाव उलटा होगा। भारतीयो पर और कडे अपमानजनक बंधन लगाने का प्रोत्साहन मिलेगा। एक बात और है। टोप लगाने पर गोरे आपको वेटर कहने लगेगे। गांधीजी को सेठ की सलाह अच्छी लगी। उन्होने पगडी काण्ड को अखबारो मे छपवाया, जिससे तीन चार दिनो में ही दक्षिण अफ्रीका में उनकी प्रसिद्धि हो गई।
सेठ के प्रतिवादी और अटार्नी वकील प्रीटोरिया में रहते थे। बैरिस्टर गांधी को वहाॅ जाकर मामले को स्वयं समझना था। और अटार्नी को समझाना था। सेठ ने उन्हे पहले दर्जे का टिकिट लेकर रेल के पहले दर्जे के डिब्बे में बैठा दिया। गाडी जब रात के लगभग नौ बजे नैटाल की राजधानी मैरिफ्सबर्ग पहुॅची, तो उस डिब्बे में एक अंग्रेज घुसा और एक काले आदमी को देखकर पहले तो चैका फिर रेल अधिकारी को ले आया और अपमान भरी आवाज में बोला उतर दूसरे डिब्बे में जा गांधीजी ने कहा कि मेरे पास पहले दर्जे का टिकिट है। मैं दूसरे डिब्बे में नही जा सकता। गोरे ने जिद की और अशिष्टता से बोला नही उतरेगा तो तुझे जबरजस्ती उतारा जाएगा। गांधीजी नही उतरे और सचमुच उन्हे जबरजस्ती उतार दिया और उनका सामान प्लेटफार्म पर फेंक दिया गया। गांधीजी रेलवे कर्मचारियो से बहस करते ही रहे और गाडी प्लेटफार्म छोडकर आगे बढ गई। रात बीतती जा रही थी।कडाके की सर्दी पड रही थी। गांधीजी ठिठुरते काॅपते वेटिंग रुम में बैठे रहे। रात भर बैठे बैठे सोचते रहे क्या मुझे अपने अधिकारो के प्रति लडना चाहिए। या चुपचाप स्वदेश लौट जाना चाहिये। परन्तु मुकदमें को अधूरा छोडकर भाग जाना भी तो कायरता होगी। मुझ पर आज जो बीती है।वह एक महारोग का लक्षण है, यहाॅ भारतीय इसी तरह से अपमानो को सहते आ रहे है। कुछ भी हो मैं प्रत्येक स्थिति का सामना करुॅगा राग द्धेष से दूर रहकर अन्याय का विरोध करुॅगा। यह अन्तरात्मा की आवाज थी। जिसने उनके भावी कार्यक्रम की रुपरेखा निश्चित कर दी।
सबेरे गांधीजी ने सेठ अब्दुलला को तार भेजकर रातबाली घटना की सूचना दी। जिससे सेठ ने तुरनत स्टेशन मास्टर को उन्हे रेल यात्रा की सुबिधा देने के लिये। तार दिया गया और बीच स्टेशनो पर अपने लोगो को गांधीजी से मिलने के लिये तार द्रारा सूचना दी गई, गांधीजी पुनः गाडी में बैठे गाडी उन्हे चाल्र्स टाउन ले गई, चाल्र्स टाउन से प्रीटोरिया तक रेल नही थी। इसीलिये कोच में यात्रा करनी पडती थी। वहाॅ से उन्हे कोच सिकरम घोडागाडी में यात्रा करनी थी। कोच के एजेंट ने गांधीजी के टिकिट को स्वीकार नही किया यद्यपि गांधीजी बैरिस्टर थे। पर थे। तो भारतीय और गोरे लोग भारतीयो को कुली ही समझते थे। गांधीजी के बहुत झगडने पर एजेंट ने उन्हें कोचबाॅक्स पर बैठने की अनुमति दे दी।गांधीजी कोच के भीतर बैठना चाहते थे। पर एजेंट जब उन्हें कोच में ले जाने के लिये राजी ही नही था। तब अद्र्ध त्यजेत् सः पंडितः अद्र्ध तजहिं बुध सर्वस जाता की नीति को स्वीकार कर बाहर कोचबाॅक्स पर बैठ गये। क्योकि उन्हे प्रीटोरिया शीध्रतिशीध्र्र पहुॅचना था। जब कोच अगले मुकाम पर पहुॅची तो जिस गोरे ने उन्हे कोचबाॅक्स पर बैठने की अनुमति दी थी। उसी ने उन्हे पुनः उठाने की कोशिश की अब तुम नीचे बैठो मैं ड्राइवर के पास बैठूॅगा।
गांधीजी बोले अरे तुम्ही ने तो मुझे कोचबाॅक्स पर बैठाया था अब तुम मुझे अपने पैरो के नीचे बैठाना चाहते हो मैं हरगिज नही बैठूॅगा अब मैं कोच के भीतर बैठूॅगा। गोरा गोधीजी के दृढतापूर्ण उत्तर में चिढ गया। उसने उनके सिर पर चोट की और जबरन उन्हें बाॅक्स से नीचे उतारने की कोशिश करने लगा गांधीजी कोचबाॅक्स की लोहे की छड को मजबूती से पकड ेरहे और मार खाते रहे यह अमानवीय दृश्य देखकर कुछ अंग्रेज यात्रियो की मानवता जागी। और उन्होने उन्हें कोच के भीतर बैठाना स्वीकार कर लिया। इसी प्रकार वे जोहेंसवर्ग पहुॅचे। प्रीटोरिया पहुॅचने के पूर्व उन्हें इस नगर में ठहरना पडा। क्योकि जिस व्यक्ति से उन्हें यहाॅ मिलना था, वह नही पहुॅच पाया था। वे वहाॅ के एक बडे होटल में पहुॅचे। और ठहरने के लिये कमरा माॅगा। मैनेजर ने जगह न होने की बात कहकर उन्हें टाल दिया। तब वे एक भारतीय की दुकान पर गए।जब उन्होने उसे अपनी बीती सुनाई। तो उसने कहा भाई, ऐसी घटनाएॅ तो हम लोगो के साथ प्रायः घटती रहती है। होटल में कमरे नही मिलते, हम गोरे के साथ बैठकर खाना नही खा सकते। पहले दूसरे रेल दर्जे में रेल यात्रा नही कर सकते बसो मे इजजत से नही बैठ सकते क्या कहे हजारो मुसीबते है। गांधीजी को रेल यात्रा कर प्रीटोरिया जाना था। और वे पहले दर्जे में ही यात्रा करना चाहते थे। उन्होने स्टेशन मास्टर को एक चिटठी लिखी कि मैं बैरिस्टर हूॅ। हमेशा फस्र्ट क्लास में यात्रा करता हूॅ। मुझे जल्दी फस्र्ट क्लास का टिकिट चाहिये। चिटठी भेजने के बाद वे पाश्चात्य वेशभूषा में गए। स्टेशन मास्टर ने उन्हे फस्र्ट क्लास का टिकिट तो दे दिया। पर यह प्रार्थना भी की यदि मार्ग में कोई फस्र्ट क्लास डिब्बे से उतार दे, तो आप रेलवे के विरुद्ध कानूनी कार्रबाई न करे। गांधीजी ने उसकी बात मान ली।
मंगल पाण्डे एक सैनिक था, जो बैरकपुर बंगाल स्थित छावनी में पदस्थ था। 29 मार्च 1857 को इस सैनिक ने चर्बी लगे कारतूसो को मुॅह से काटने से स्पष्ट मना कर दिया था व क्रोध में आकर अपने अधिकारियो की हत्या कर दी थी। फलस्वरुप उसे बंदी बना लिया गया और 8 अप्रैल 1857 को फांसी दे दी गई।