विधायक की ब्रांडिंग के लिए खजाने को 50 लाख की चपत

राजेश शुक्ला/अनूपपुर। 24 फरवरी को जिले में प्रदेश के मुखिया शबरी महोत्सव में हिस्सा लेने आ रहे हैं। ऐसा मानकर जिला प्रशासन इसकी तैयारियों में जी-जान से जुटा है, लगातार बैठकों का दौर जारी है। इसके लिए जिला प्रशासन ने तीन दिन की पडने वाली शासकीय अवकाश को भी रद्द कर दिया और इसे सफल बनाने के लिए दिन-रात एक कर रहा है। ऐसा नहीं है कि अवकाश रद्द होने से आमजनों के कार्य हो रहे हैं अपितु इसलिए यह अवकाश रद्द किया गया है कि मुख्यमंत्री के कार्यक्रम के लिए आवश्यक उपाय कर अधिक से अधिक भीड़ जुटाने का प्रबंध किया जा सके और विभागों मेें किए गए गोलमालों को दुरूस्त कर सकें।

ज्ञात हो कि पहले यह कार्यक्रम भाजपा के अनूपपुर विधायक का था। जिन्होंने एक माह पूर्व ही शहर के चुनिंदा जगहों पर बडे-बडे होर्डिंग लगाये थे किंतु अचानक यह कार्यक्रम शासकीय हो गया। इस संबंध में जब हमने भाजपा के जिलाध्यक्ष से जानना चाहा तो उन्होंने बताया कि यह कार्यक्रम पार्टी का है। इसके लिए पार्टी जोर-शोर से सफल बनाने के लिए लगी है। अब जब शबरी महोत्सव का सरकारीकरण हो चुका है तो इसके लिए बकायदा शासन से 50 लाख स्वीकृत किया गया है ताकि विधायक के चेहरे को चमकाया जा सके। 

इसके लिए बकायदा मुख्यमंत्री से भी समय मांगा गया। संभावना है कि 24 फरवरी को मुख्यमंत्री इस महोत्सव में शामिल होंगे। इस कार्यक्रम को सफल बनाने के लिए जिला प्रशासन पूरी तरह कमरकस कर विधायक के साथ खडा है कि किसी तरह भीड़ जुटाकर चेहरे को और चमकाया जा सके किंतु इस महोत्सव के पहले अभी तक कोई भी ऐसा कार्य विधायक द्वारा नहीं कराया गया जिससे जनता कह सके कि हमने जिसे चुना है वह विधायक दोबारा चुनने लायक है। जिले में ऐसे कई कार्य आज भी अधूरे हैं या जिनका कार्य पूरा नहीं हुआ है उसे पूरा कराने की जिम्मेदारी जिला मुख्यालय में बैठे सत्तादल के विधायक की जिम्मेदारी ज्यादा बनती है। एक जनप्रतिनिधि को जब मीडिया से मिलने के लिए जिला प्रशासन का सहयोग लेना पडे तो इससे बडा दुर्भाग्य क्या होगा कि जनप्रतिनिधि मीडिया के बीच में भी अपनी जगह बनाने में नाकाम साबित हुआ है तो जनता के बीच कैसे कामयाब हो सकता है।

जिले की हालात इतने खराब हैं कि यहां पर कार्य करने वाले अधिकारी-कर्मचारियों की संख्या भी पूरी नहीं है जिससे आमजनों को कठिनाईयों का सामना करना पड़ रहा है, चाहे वह किसी भी विभाग का हो। सबसे बदतर हालात शिक्षा का है, जहां गिनती के प्राचार्य हैं। पूरे जिले में प्रभारियों के भरोसे शिक्षा चल रही है ऐसे में गुणवत्ता का ध्यान रखना बेइमानी होगी। जिले के चारों जनपदों में से तीन जनपद पंचायत में पूर्णकालिक मुख्य कार्यपालन अधिकारी नहीं हैं। शिक्षकों को स्कूलों के बजाय कार्यालयों में बैठाया गया है, जिससे किसी तरह कार्यालयीन कार्य पूरा कराया जा सके। कलेक्ट्रेट में डिप्टी कलेक्टर के पद खाली हैं। 

ऐसे कई जिला कर्यालय हैं जहां उधार के अधिकारी और बाबू जिम्मा संभाले हैं। यह जिम्मेदारी जनप्रतिनिधियों की होती है कि क्षेत्र के विकास के लिए जो जरूरी संसाधन है उसको शासन से मांग कर जनता को मूलभूत सुविधाएं दिलाएं। किंतु इसके लिए भी जनप्रतिनिधि आगे नहीं आ रहे हैं ऐसे में जनता पत्रकारों की ओर मुंह ताकती है और पत्रकार समय-समय पर अपनी कलम से शासन-प्रशासन को क्षेत्र की समस्याओं से अवगत करा कर उन्हें निदान के लिए विवश करती है। उसमें भी कुछ जनप्रतिनिधि रोडा अटकाने का कार्य करते हैं।

जिले में तीन विधानसभा क्षेत्र हैं जिसमें दो पर कांग्रेस के विधायक एक पर भाजपा का है जो महत्वपूर्ण जिला मुख्यालय के हैं किंतु इनके द्वारा भी विकास कार्य में ध्यान न दिये जाना यह जनता के साथ बेइमानी है।

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