राकेश दुबे@प्रतिदिन। कांग्रेस की अध्यक्ष श्रीमती सोनिया गाँधी ने जे एन यु मामले में चुप्पी तोड़ी और यह कह दिया कि “मोदी सरकार इस मामले में होश खो चुकी है | पता नहीं क्यों सारा दोष सरकार के मत्थे मढ़कर प्रतिपक्ष इस बात को कहने से बचने की कोशिश कर है कि छात्र होने का यह अर्थ नहीं है वो सीमा लांघ दें , जिसके उस पार देश से नफरत खड़ी है। अधिकतर प्रतिपक्ष ने प्रधानमंत्री को उपदेश दिया कि छात्र आखिर छात्र होते हैं, सो, उनको अपनी बातें रखने की छूट होनी चाहिए, चाहे उन बातों से देशद्रोह की बू ही क्यों न आती हो। इस दौरान कुछ ऐसे लेख भी छपे, जिनमें यह साबित करने की कोशिश की गई कि जेएनयू में अभी जो कुछ हुआ और हो रहा है, वह सिर्फ इसलिए कि भाजपा इस वामपंथी विचारधारा वाले विश्वविद्यालय पर कब्जा जमाना चाहती है। किसी ने इस पर रोशनी डालने का प्रयास नहीं किया कि जेएनयू में जो नारे लगे, उनमें जेहाद शुरू करने का संदेश छिपा था। ऐसे नारे कोलकाता की जाधवपुर विश्वविद्यालय में भी सुनने को मिले हैं।
जेएनयू के कई छात्रों ने उन नारों को नकारा और साबित करना चाहा कि कन्हैया कुमार इस तरह के नारे नहीं लगा रहा था। लेकिन सुन तो रहा था। उसने उन लोगों को रोकने की कोशिश क्यों नहीं की, जो नारे लगा रहे थे? प्रश्न यह है की कहां से शुरू करेंगे वह जांच-पड़ताल, जिसकी गंभीर आवश्यकता सिर्फ जेएनयू में नहीं, जाधवपुर और अन्य विश्वविद्यालयों में भी है? ये जांच इसलिए भी जरूरी है, क्योंकि इसी से मालूम पड़ेगा कि भारतीय विश्वविद्यालयों में क्या सचमुच ऐसी जेहादी ताकतें घुस गई हैं, जिनका मकसद भारत को तोड़ना है?
हमारी समस्या यह है कि हमारे तमाम वामपंथी राजनीतिक दल इस डरावने यथार्थ का सामना करने से कतराते हैं, क्योंकि वे सोचते हैं कि ज्यादा बोलने से मुस्लिम मतदाता कहीं नाराज न हो जाएं। जेएनयू इस जेहादी उत्सव के बाद राजनेताओं की लंबी कतार लग गई, जिसमें राहुल गांधी भी थे। किसी ने उनसे नहीं पूछा कि क्या वह भारत की बर्बादी और कश्मीर की आजादी का समर्थन करते हैं? और किसके साथ खड़े हैं देश के या जेहाद के साथ |